यह सृष्टि विकार सहित है। बिना विकारों के यह गतिशील नहीं हो सकती। हमारे ऋषि-मुनियों ने विकारों को सुन्दर संज्ञा प्रदान की है। संसार
गुरु से कभी मांगने की जरूरत नहीं होती। ऐसे ही मंदिरों में जाकर रोने से कभी कुछ प्राप्त नहीं होता और न ही याचना
संगीत का और मंत्रों का गहरा संबंध है। जब इस सृष्टि की रचना का प्रारंभ हुआ तो उस समय एक भीषण शब्द उत्पन्न हुआ,
आधुनिक विज्ञान मनुष्य के कृत्रिम अंग प्रत्यारोपित करने में सक्षम है। हार्ट में पेसर लगा देते हैं, कान में सुनने के लिए मशीन, आंख
समय चक्र यदि उल्टी गति से चलने लगे तो हम कलयुग से निकलकर द्वापर से गुजरते हुए उस त्रेता युग में पहुंच जाएंगे जो
ये दो अक्षरों का शब्द ‘राम’ बहुत ही चमत्कारी है। हम जिस रामायण वाले राम की बात करते हैं तो वह तो एक अवतार
पेड़ों को काटना नहीं चाहिए। पेड़ों को काटने का अपराध भी मनुष्य की हत्या करने के समान ही है। पेड़ हमें जीवन प्रदान करते
घमंड के भाव आ जाने से व्यक्ति का पतन हो जाता है। मुगल बादशाह अकबर ने देवी मां के दरबार में सोने का छत्र
भगवान श्रीरामचन्द्र जी का इस पृथ्वी पर त्रेतायुग में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात प्रथम शरदीय नवरात्र तिथि में हुआ। ये इक्ष्वाकुवंश में महाराज दशरथ
आषाढ़ मास की पूर्णिमा गुरु के चरणों में समर्पित होकर कृतज्ञता प्रकट करने का ऐसा दिवस है जो कालचक्र की सभी तिथियों से सर्वोच्च
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