Kalpavriksha, the sacred tree revered for its ability to fulfill all desires, is deeply woven into ancient Indian lore. According to legend, when the gods and demons churned the cosmic ocean during the Samudra Manthana, this divine tree emerged as one of the fourteen celestial treasures. It is said that Sage Durvasa meditated beneath its blessed canopy. To this day, numerous trees across India are honored as living embodiments of the Kalpavriksha.
In 2013, at the Panipat Convention, His Holiness Mahabrahmrishi Shree Kumar Swami Ji recounted a remarkable experience from his earlier years. Living in a modest home in Nirankari Colony, Delhi, where he still resides, His Holiness shared a memory that has since remained etched in his mind.
One day, during a visit to a nursery, Gurudev Ji felt an inexplicable pull toward a small bonsai plant. As he moved closer and began chanting a mantra, he sensed something extraordinary. The plant was no ordinary creation but a living fragment of a vast and ancient tree, one under which great saints and sages had sought enlightenment. His Holiness emphasized that plants and trees are not mere inanimate objects; they can communicate, express sorrow, and convey emotions—insights that can be accessed through the power of mantras. When someone meditates beneath these living beings, they absorb the energy from the practice as well.
Determined to acquire the special plant, His Holiness approached the nursery owner, who quoted a price beyond his means. However, Gurudev Ji was steadfast in his pursuit, and despite the high cost, he successfully secured the plant and brought it home, where he carefully potted it.
In 1983, while the construction of the second floor of Gurudev Ji’s house was underway, dust began to settle on the plant, causing it distress. The plant conveyed its discomfort to His Holiness, who promised to relocate it to Arihanta, his first clinic in Nirankari Colony, and visit it regularly. True to his word, he moved the plant to the clinic grounds, where it flourished into a majestic tree.
As the tree grew, it faced challenges from animals that disturbed it. To protect it, Gurudev Ji had an iron barrier installed around the tree. He visited frequently, conversing with the tree, which shared its concerns and even provided insights into medicinal matters.
However, the tree’s existence was later threatened when the clinic’s landlord insisted on its removal to make way for a new building. Despite Gurudev Ji’s earnest pleas to spare the tree, the landlord remained firm and even demanded that Gurudev Ji vacate the premises. This conflict escalated into a protracted legal battle, throughout which His Holiness tirelessly advocated for the tree’s spiritual significance in court.
The situation reached a critical juncture when the landlord, intent on removing the tree, hired a worker to cut it down. Although as the worker approached, he was suddenly struck blind and, overcome with fear, abandoned the task, leaving the tree unscathed. Eventually, Gurudev Ji reached an agreement with the landlord, who demanded an extraordinary sum of four and a half crore rupees. This sum, far exceeding the property’s actual value, was the price set for preserving the divine tree. Gurudev Ji willingly paid the amount, ensuring the tree’s survival.
This tree, venerated for its holy presence, is far from ordinary. Those who bow before it with reverence and apply its soil on their forehead will have their deepest desires fulfilled. To this day, His Holiness continues to visit the tree, engaging in quiet conversations with it during the stillness of the night. He advises those who receive the sacred tree’s blessings to keep their experiences private, not sharing them with anyone.
कल्पवृक्ष से अभिप्राय उस दिव्य वृक्ष से है जो सभी प्रकार की इच्छाओं और मनोकामनाओं को पूरा करता है। पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और असुरों ने जब समुद्रमंथन किया था उसके फलस्वरूप तब जो 14 रत्न निकले थे, उनमें से एक कल्पवृक्ष भी था। इस पेड़ के विषय में एक किंवदंती है कि ऋषि दुर्वासा ने इस वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी। इस दिव्य पेड़ कल्पवृक्ष के अंशरूप में भारत में आज भी कई वृक्ष मौजूद हैं। ऐसे ही एक कल्पवृक्ष के विषय में परम पूज्य सद्गुरुदेव जी द्वारा पानीपत समागम में किया गया रहस्योद्घाटन प्रस्तुत है।
यह कथा उन दिनों की है कि जब मैं दिल्ली की निरंकारी कालोनी के छोटे से मकान में रहता था, जिसमें आज भी मैं रह रहा हूँ। एक बार में गुरु मां के साथ एक नर्सरी में गया तो एक बौंसाइल किए हुए पौधे ने मुझे बहुत आकर्षित किया। जब मैं उसके पास गया और मंत्र का जाप किया तो मैंने जान लिया कि यह पौधा एक बहुत विशाल एवं दिव्य वृक्ष का अंश है जिसके नीचे बैठकर बड़े-बड़े संतों और महापुरुषों ने साधना की थी, ध्यान किया था। पेड़-पौधों को निर्जीव न समझें, ये बोलते भी हैं, अपनी व्यथा प्रकट करते हैं और भावों की अभिव्यक्ति भी करते हैं जिसे मंत्रों के पाठ के प्रभाव से जाना जा सकता है। यदि इसके नीचे बैठकर तपश्चर्या की जाए तो ये उसकी ऊर्जा को भी ग्रहण करते हैं। मैंने उस पौधे को नर्सरी मालिक से देने को कहा तो वह इतनी कीमत मांगने लगा जो मेरी सीमा से बाहर थी। फिर भी येन-केन प्रकारेण मैंने वह पौधा हासिल कर लिया और अपने घर लाकर एक गमले में लगा दिया। 1983 में जब मकान की दूसरी मंजिल बनने लगी तो उस पर मिट्टी पड़ने लगी और मुझे उसने अपनी व्यथा बताई। मैंने उससे कहा कि मैं तुम्हें अरिहंत में स्थान दूंगा जहां मैं भी आपसे मिलता रहूंगा। सहमति मिलने पर उस पौधे को अरिहंत यानि मेरी सबसे पहली क्लीनिक जो निरंकारी कालोनी में ही स्थित थी, के बाहर ले जाकर जमीन में लगा दिया गया। वह मेरी क्लीनिक के बाहर वैसे तो बहुत खुश था लेकिन कभी कोई पशु उसे कष्ट पहुंचाता था तो वह दुखी हो जाता था। जब मुझे उसने शिकायत की तो मैंने उसकी सुरक्षा के लिए लोहे का एक सुरक्षा कवच बनवा दिया। मैं जब वहां जाता था तो उससे वार्तालाप होता था। मैं विभिन्न विषयों के अतिरिक्त औषधियों के बारे में भी उससे बात करता था और सलाह भी लेता था। धीरे-धीरे वह पौधा एक वृक्ष के रूप में बड़ा हो गया। अब यह समस्या आई कि मेरे क्लीनिक का मकान मालिक मुझसे उस पेड़ को काटने के लिए कहने लगा क्योंकि वह एक बड़ी बिल्डिंग बनाना चाहता था और वह पेड़ इसमें बड़ी अड़चन था। मैंने उन्हें बार-बार समझाया कि इसे रहने दें, इसने आपका क्या बिगाड़ा है। उन्होंने मुझसे वह क्लीनिक भा खाली करने के लिए कहा। यहां क्लीनिक की दुकान खाली करने का मसला विषय नहीं था, वह पेड़ था। एक दिव्य पेड़ के अस्तित्व की लड़ाई थी। यह लड़ाई इतनी बड़ी कि कोर्ट में चली गई। मै न्यायाधीश को भी अपनी बात समझाने की पूरी कोशिश की। कई सालों तक यह कंस कोर्ट में चलता रहा। अंत में मैंने मकान मालिक को कहा कि तुम जो भी कीमत अपने मकान की लेना चाहो उसे मैं दे दूंगा लेकिन इस पेड़ को कटने नहीं दूंगा। एक बार तो मकान मालिक ने एक व्यक्ति को इस पेड़ को काटने के लिए नियुक्त भी कर दिया था लेकिन जब वह इसे काटने आया तो अंधा हो गया। वह घबरा कर अपने घर लौट गया और फिर कभी नहीं आया।
अंतत: मेरा फैसला मकान मालिक से हो गया और उसने उस मकान की भारी कीमत वसूल की जो साढ़े चार करोड़ रुपए के रूप में थी। वह उस मकान की कीमत नहीं वरन उस दिव्य पेड़ के “अस्तित्व की कीमत थी जो मैंने उसे दे दी। यह पेड़ साधारण पेड़ नहीं है। यदि कोई श्रद्धा से उसको नमन करके उसकी मिट्टी अपने माथे पर लगाता है तो इसकी हर इच्छा पूरी होती है। मैं अब भी रात के समय उससे मिलने जाता हूं और वार्तालाप करता हूं। यदि किसी को उसकी पूजा से लाभ हो तो इस नियम का पालन करे कि अपने अनुभव किसी को भी न बताए।
कल्पवृक्ष के पूजन से हुए अनुभव
पारिवारिक संबंध टूटने से बचे
परम पूज्य सद्गुरुदेव जी, मेरे पति और उनके बड़े भाई एक ही मकान में रहते हैं। पिछले कुछ समय से छोटी-छोटी बातों पर तकरार होने से घर में अशांति का माहौल रहने लग गया था। बात यहां तक बिगड़ गई थी कि मकान में कोई एक ही रहेगा। आए दिन के झगड़ों के कारण मुझे तनाव की बीमारी हो गई थी। एक दिन मेरी सहेली मुझे भगवान श्री अक्षय कल्पतरु के स्थान पर ले आई। यहां आकर मुझे बहुत शांति महसूस हुई। मैंने यहां लगातार एक महीने तक घर की सुख-शांति के लिए पाठ किया। इसके प्रभाव से घर में अच्छा वातावरण बन गया। एक दिन मैं अपने पूरे परिवार को लेकर यहां आई। इसके बाद अब कोई कलह हमारे घर में नहीं है।
निर्मला राणा, तोमर कालोनी, दिल्ली
मनचाही मिली नौकरी
परम पूज्य सद्गुरुदेव जी, मैंने एमबीए करने के बाद कई ब्लू चिप्स कंपनियों में अप्लाई किया लेकिन कोई अच्छा जॉब नहीं मिला। मैंने थकहार कर गुड़गांव की एक कंपनी में कामचलाऊं नौकरी कर ली। एक बार मेरे एक मित्र ने मुझे कहा कि यदि तुम निरंकारी कालोनी में जाकर भगवान श्री अक्षय कल्पतरु से प्रार्थना करो और पूजा पाठ करो तो शायद तुम्हारी मनोकामना पूरी हो सकती है। मैंने ऐसा ही किया। मैं यहां आकर 40 दिन तक पाठ करता रहा। मुझे नोएडा स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी से कॉल आई तो मेरी खुशी की सीमा न रही। इतना ही नहीं मुझे मनचाही नौकरी भी मिल गई।
दिनेश श्रीवास्तव, रोहिणी, नई दिल्ली
परीक्षा में मिली सफलता
परम पूज्य सद्गुरुदेव जी, मेरी सबसे बड़ी कमी यह थी कि जब भी मैं परीक्षा में बैठती थी तो मेरा आत्म विश्वास डोलने लगता था। इस प्रकार मैं पूरा प्रश्न पत्र हल नहीं कर पाती थी और कभी-कभी तो लिखने की स्पीड भी कम हो जाती थी। इस कारण मेरी डिवीजन नहीं बन पाती थी। 12वीं कक्षा के एक्जाम जब नजदीक आए तो मैं अपनी मम्मी के साथ निरंकारी कालोनी में आई और भगवान श्री अक्षय कल्परु के चरणों में बैठकर पाठ किया। इस तरह जब भी मुझे समय मिलता था मैं यहां आने लगी। मुझे अपने मन में पूरा विश्वास महसूस होने लगा। इसका परिणाम यह निकला कि मैं प्रथम श्रेणी में पास हुई।
पल्लवी, विजय नगर, नई दिल्ली
डिप्रेशन से मिला छुटकारा
परम पूज्य सद्गुरुदेव जी, मैं कई वर्षों से पारिवारिक परेशानी के कारण तनाव और डिप्रेशन में रहती थी। जिंदगी एक तरह से नरक बन गई थी। दवाई खाने से नींद आ जाती थी लेकिन कई बार आती भी नहीं थी। मैं किसी तरह से भगवान श्री अक्षय कल्पतरु तक पहुंची क्योंकि मैंने इसके बारे में बहुत सुना था। मैंने उस दिन यहां पर अन्य श्रद्धालु भाई-बहनों से पूछकर पूजा-पाठ किया और खूब रोई भी। मैंने अपने आप को बहुत ही हल्का अनुभव किया। इसके बाद मैं एक दिन छोड़कर यहां आने लगी। मुझे अपनी बीमारी में आराम आया। दो महीने के बाद तो मैं बिल्कुल सामान्य हो गई।
सुधा गुप्ता, नांगलोई, दिल्ली