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अहंकार रहित सेवा भाव

घमंड के भाव आ जाने से व्यक्ति का पतन हो जाता है। मुगल बादशाह अकबर ने देवी मां के दरबार में सोने का छत्र चढ़ाया लेकिन वह सोने का ही नहीं रहा, न जाने किस धातु का हो गया। मां ज्वाला जी के भवन पर आज भी सुरक्षित रखा हुआ है। उसकी धातु का ही नहीं पता लगा। इसका कारण बादशाह को घमंड था। उसने छत्र चढ़ाते हुए मां के दरबार में कहा था कि मां तेरे दरबार में बहुत भक्त आते हैं लेकिन किसी ने भी इतना बड़ा सोने का छत्र नहीं चढ़ाया है जितना बड़ा मैं चढ़ा रहा हूं। इतना कहते ही वह छत्र सोने का ही नहीं रहा और देवी मां ने उसे अस्वीकार कर दिया। इस घटना से उस महान बादशाह अकबर का घमंड चूर हो गया और उसने पश्चाताप भी किया। सेवा करो लेकिन मन में घमंड नहीं होना चाहिए सेवा निस्वार्थ भाव से करनी चाहिए। जो सेवा किसी स्वार्थ से की जाती है, उसका फल प्राप्त नहीं होता। भगवान हनुमान जी निस्वार्थ सेवा के महानतम उदाहरण हैं। भगवान हनुमान जी ने भगवान श्रीरामचन्द्र जी की निस्वार्थ सेवा की। इसके बदले में उन्होंने कुछ मांगा भी नहीं। भगवान लक्ष्मण के प्राण बचाने हेतु रात ही रात में संजीवनी बूटी लाए लेकिन इसका श्रेय भी उन्होंने भगवान श्रीराम जी को ही दिया। यदि भगवान हनुमान न होते तो शायद राम-रावण युद्ध का कोई और ही प्रारूप होता। लंका विजय में भगवान हनुमान जी ने अहम् भूमिका निभाई थी। अहिरावण जब भगवान श्रीराम जी व भगवान श्री लक्ष्मण जी को अपनी माया से हरण करके ले गया तब भगवान हनुमान जी अहिरावण को मारकर इन्हें छुड़ा कर लाए थे। माता सीता की खोज करके लंका में आग लगाने वाले भी भगवान हनुमान ही थे। इतना ही नहीं महाभारत काल में भी भगवान हनुमान जी ने सहायता की थी। अर्जुन के ध्वज में स्थापित होकर अपनी शक्ति प्रदान की थी। भगवान श्रीकृष्ण के गोलोक को प्रस्थान करने तक भगवान हनुमान जी की उपस्थिति का वर्णन है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इन्हें कलियुग का अधिकृत देव नियुक्त करते हुए कहा था कि कलियुग में संसार के जीवों के दुख निवारण का कार्य मैं तुम्हें सौंपता हूं। इनकी स्तुति में कहा जाता है-

संकट कटै मिटै सब पीरा ।

जो सुमिरै हनुमत बलवीरा ||

जिन्होंने भगवान श्रीरामचन्द्र जी की स्वार्थवश सेवा की, उन्हें भी मनवांछित फल मिला है। अंगद को युवराज पद मिला। विभीषण को लंका का राज्य मिला लेकिन हनुमान जी ने केवल प्रभु के चरणों की भक्ति ही मांगी। इन्हें न किसी राज्य की इच्छा की और न ही बहुमूल्य हीरे-मोती और जवाहरात की । जिस वस्तु में भगवान श्री सियाराम नहीं, उनके लिए वह व्यर्थ ऐसा भाव भगवान हनुमान जी का था। आज ये ही वंदनीय हैं। सभी देवों में सर्वोपरि और अजर-अमर हैं। नव निधि व अष्टसिद्धि से युक्त और इन्हें भक्तों को भी प्रदान करने वाले भगवान हनुमान जी सेवादारों में अनुकरणीय है। भगवान हनुमान जी गुरु के रूप में भी वंदित हैं-‘जय जय जय हनुमान गुसांईं, कृपा करो गुरुदेव की नाईं’। भगवान श्रीराम से भी बड़ा राम का नाम है, ऐसा भगवान हनुमान जी ने कहा है लेकिन भगवान हनुमान जी के नाम स्मरण से बड़े-बड़े कष्ट मिट जाते हैं। मैं जो पाठ आपको प्रदान कर रहा हूं उससे भगवान हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है।

-प्रभु कृपा पत्रिका, जनवरी, 2019

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