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भगवान श्रीरामचन्द्र जी व माता सीता से सम्बद्ध काल गणना

भगवान श्रीरामचन्द्र जी का इस पृथ्वी पर त्रेतायुग में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात प्रथम शरदीय नवरात्र तिथि में हुआ। ये इक्ष्वाकुवंश में महाराज दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में अवतरित हुए। प्रायः कालगणना व तिथि आदि के बारे में लोगों को शंका हो जाती है क्योंकि इनके शासनकाल आदि के विषय में हजारों की संख्या बताई जाती है। यह इसलिए है कि इनका अवतरण आज से दस हजार से भी अधिक वर्षों पूर्व जब हुआ था उस समय वेदों पर आधारित काल गणना का प्रचलन था। जो उस समय एक हजार वर्ष है और वह आज की गणना में एक वर्ष है। अतः यह उक्ति प्रचलित हुई-

चौदह हजार वर्ष पर्यन्ता, राज कीन्ह श्री लक्ष्मीकन्ता ।

कई विद्वानों व शोधकर्ताओं ने इस विषय में कहा है कि भगवान श्रीरामचन्द्र जी का गोलोक गमन 155 वर्ष की आयु में हुआ था। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण ग्रंथ को इस विषय में विश्वसनीय साक्ष्य के रूप में माना जा सकता है क्योंकि ये भगवान श्रीरामचन्द्र जी के समकालीन है। भगवान श्रीरामचन्द्र जी वनवास के दौरान इनके आश्रम में मिले हैं। इसके अतिरिक्त माता सीता अपने वनवास काल में महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही रहीं और यहीं पर ही भगवान श्रीरामचन्द्र जी के समक्ष पृथ्वी माता की गोद में समाई।

महर्षि वाल्मीकि की रामायण के अनुसार जब श्रीरामचन्द्र जी व माता सीता का विवाह हुआ उस समय भगवान श्रीरामचन्द्र जी की आयु 13 वर्ष और माता सीता की आयु 6 वर्ष है। विवाह के उपरान्त माता सीता व भगवान श्रीरामचन्द्र जी 12 वर्षों तक अयोध्या में साथ रहे। इस अवधि के बीत जाने पर भगवान श्रीरामचन्द्र जी के राज्याभिषेक की घोषणा हुई। लेकिन विधि को यह मंजूर नहीं हुआ और इन्हें वन जाना पड़ा। वन गमन के समय भगवान श्रीरामचन्द्र जी की आयु 25 वर्ष और माता सीता जी की आयु 18 वर्ष वर्णित है।

वनवास के समय भगवान श्रीरामचन्द्र जी की आयु 25 व माता सीता जी की आयु 18 वर्ष है। भगवान श्रीरामचन्द्र जी 13 वर्ष तक वनों में माता सीता व भ्राता श्री लक्ष्मण जी के साथ रहे। 13 वर्ष बीत जाने के बाद सूर्पणखा प्रसंग के फलस्वरूप रावण ने माता सीता का हरण कर लिया और उन्हें बंधक बनाकर अशोक वाटिका में रखा। माता सीता का यहां रावण के साथ हुआ संवाद उल्लेखनीय है जो रामायण के अरण्यकाण्ड में वर्णित है। रावण के पूछने पर माता सीता कहती हैं-

उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने, भुंजना मानुषान् भोगान सर्व कामसमृद्धिनी । अभषेचयितुं रामं समेतो राजमंत्रिभिः, परिगृह्य तु कैकेयी श्वसुरं सुकृतेन मे ।

मम प्रव्राजनं भुतुर्भरतस्याभिषेचनम्, द्वावयायत भर्तारं सत्यसंधं नृपोत्तमम्। मम भर्ता महातेजा वयसा पंचविंशकः, अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते।

अर्थात 12 वर्ष तक इक्ष्वाकुवंशी महाराज दशरथ के महल में रहकर मैंने अपने पति के साथ सभी सुख भोगे हैं। मैं वहां सब मनोवांछित सुख-सुविधाओं से सम्पन्न रही हूं। वन आते समय मेरे पति की आयु 25 वर्ष और मेरे जन्मकाल से लेकर उस समय तक गणना के अनुसार मेरी आयु 18 वर्ष की रही है। उल्लेखनीय है कि माता सीता लंका में एक वर्ष 14 दिनों तक रहीं।

इससे यह सिद्ध होता है कि वनों से अयोध्या में वापसी के समय और माता सीता की आयु 33 वर्ष है। वनों से लौटने के बाद एक वर्ष तक ये दोनों साथ-साथ रहे और इसके बाद माता सीता को पुनः वनवास प्राप्त हो गया। जब पुनः माता सीता वनों को गईं तब उनकी आयु 34 वर्ष और श्रीराम जी 41 वर्ष के हैं। माता सीता के वनवास काल के प्रथम वर्ष में ही उनके पुत्रों लव-कुश का | अवतरण हुआ। इनका लालन-पालन व शिक्षा-दीक्षा महर्षि वाल्मीकि के संरक्षण में हुई। 12-13 वर्ष की आयु में इन्होंने भगवान श्रीरामचन्द्र जी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ लिया और राम से युद्ध में आमना-सामना होने पर माता सीता को बीच में आना पड़ा। उस समय माता सीता की आयु 45-46 वर्ष है और भगवान श्रीरामचन्द्र जी की आयु 56-57 वर्ष है।

माता सीता के भूमि में समा जाने के पश्चात लगभग 100 वर्षों तक भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने पत्नी विहीन जीवनयापन किया और राजा के तौर पर प्रजा का पालन किया तथा पृथ्वी की चारों दिशाओं रामराज्य की स्थापना की। निसंदेह भगवान श्रीरामचन्द्र जी एक आदर्श पुत्र, एक आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श शिष्य, आदर्श सखा, आदर्श राजा ही नहीं एक आदर्श शत्रु भी हैं। जय रघुनंदन जय सियाराम, हे दुखभंजन तुम्हें प्रणाम।

-प्रभु कृपा पत्रिका, अप्रैल 2022

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