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नाड़ी दोष महादोष है

नाड़ी दोष के कारण दिन-प्रतिदिन वैवाहिक जीवन में विघटन आ रहा है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में इस प्रकार की परिस्थितियां बनी हुई हैं कि दाम्पत्य जीवन शुरू होने के कुछ समय के बाद ही बिखर जाता है। स्त्री व पुरुष में जो समन्वय व तालमेल होना चाहिए वह नहीं बनता। इस कारण जीवन दूभर हो जाता है, लड़ाई-झगड़े, वाद-विवाद भयंकर रूप धारण कर लेते हैं और इसका परिणाम बहुत घातक होता है। इसके कारण तलाक, आत्महत्या तथा हत्या की घटनाएं समाचार पत्रों की सुर्खियां बन जाती हैं। भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार विवाह रूपी संस्था का परम नियम है कि विवाह के लिए वर तथा वधू की जोड़ियां बनाने से पहले उनकी कुंडलियों का मिलान करके प्रमुख रूप से नाड़ी दोष की जांच कर लेना चाहिए अन्यथा इसके दुष्परिणाम भुगतने ही पड़ते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में हर वर्ष आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं तदानुसार हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। जानकर हैरानी होती है कि इसमें ज्यादातर वे लोग होते हैं जो या तो अपने जीवनसाथी के धोखा देने के कारण आत्महत्या करते हैं अथवा पारिवारिक जीवन से त्रस्त होकर यह कदम उठाते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार भारत में वर्ष 2005 से 2015 के बीच में आत्महत्या करने वालों में 17.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विश्व में आत्महत्या करने वालों की संख्या लगभग एक मिलियन है। वर्ष 2020 तक यह विश्व की सबसे बड़ी बीमारी के रूप में सामने आई है। भारत में भी यह रोग बहुत बुरी तरह से पैर पसार रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण पश्चिमी देशों की सभ्यता तथा संस्कृति का अनुपालन है। हमारे युवा भारतीय सनातन संस्कृति को त्याग रहे हैं तथा जो हमारी धरोहर है उसे ठुकराकर गर्त की ओर अग्रसर हो रहे हैं। उस मार्ग पर चल रहे हैं जो बर्बादी की ओर ले जाता है।

भारत में विशेष रूप से आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण केवल और केवल बेमेल विवाह ही होता है। चाहे कितना भी पश्चिमी प्रभाव हो लेकिन फिर भी यहां कुछ सनातन संतों तथा महापुरुषों के प्रभाव तथा कृपा से भारत में संस्कार बचे हुए हैं। किसी स्वार्थवश जब माता-पिता बिना किसी सोच विचार के विवाह कर देते हैं तब ही इस तरह की स्थिति पैदा होती है। अन्यथा सुखी दाम्पत्य जीवन देखने को मिलता है। नाड़ी दोष में विवाह करने पर जो विकार उत्पन्न होते हैं उनसे आने वाली संतान भी प्रभावित होती हैं। प्रायः किशोर तथा किशोरियां भी आत्महत्या कर लेते हैं। सुखी परिवार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है कि नाड़ी दोष के दुष्परिणामों तथा दुष्प्रभावों से बचने के लिए विवाह से पूर्व अष्टकूट के द्वारा कुंडली मिलान करवाई जाए तथा नाड़ी दोष होने पर विवाह बिल्कुल भी न करें।

कैसे बनता है नाड़ी दोष

वर-कन्या के जन्म नक्षत्र एक ही नाड़ी के नहीं होने चाहिए। दोनों की नाड़ियां भिन्न होनी चाहिए इसी को शुभ माना जाता है। तदानुसार आदि-आदि, मध्य-मध्य, अन्त्य अन्त्य नाड़ी होने पर विवाह अशुभ माना जाता है। यह आवश्यक होता है कि दोनों की नाड़ियां एक न हों। आदि-मध्य, मध्य-अन्त्य तथा आदि अन्त्य को शुभ माना जाता है। ऐसा न होने पर नाड़ी दोष माना जाता है। यदि दोनों नाड़ियां मध्य है तो इसे अति अशुभ माना जाता है। ऐसी स्थिति में विवाह नहीं करना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो दाम्पत्य जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। लड़ाई-झगड़ा, क्लेश, वाद-विवाद तथा अलगाव और मृत्यु का दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है। अन्त्य नाड़ी एक होने पर भी वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है। वर और कन्या की कुंडलियों में नाड़ी दोष होने पर विवाह को टाल देना चाहिए। इतना ही नहीं नाड़ी दोष होने पर ‘लिव इन में रहने वालों के लिए भी संकट के बादल घेर लेते हैं। ऐसी स्थिति में प्रेम तथा शारीरिक संबंध बनाने वालों के लिए भी अति दुष्कर स्थिति पैदा हो जाती है तथा परिणामस्वरूप शारीरिक-मानसिक तथा आर्थिक रूप से हानि होती है।

नाड़ी दोष के कुप्रभाव

यदि नाड़ी दोष बन रहा हो तो उन दोनों लड़का – लड़की को आपस में भूलकर भी प्रेम या विवाह नहीं करना चाहिए अन्यथा दोनों की ही मृत्यु होती है एवं उनके परिवार का भी सर्वनाश हो जाता है।

नाड़ी दोष एक भयंकर महादोष है जिसके कारण न सिर्फ सम्बन्ध बनाने वाले लड़का-लड़की, अपितु उन दोनों के समस्त परिवार का भी समूल विनाश हो जाता है। परिवार रोगों कष्टों से घिर जाता है और अनेकों प्रकार की बाधाएं उनके जीवन में आने लगती हैं जिनका कोई समाधान नहीं हो पाता। इतना ही नहीं यह कुल के विनाश का कारण भी बन सकता है ।

प्रायः यह देखा गया है कि नाड़ी दोष होने पर दंपत्ति रोगों से घिर जाते हैं, नौकरी में/बिज़नेस में हानि होने लगती है, धन की हानि होने लगती है, परिवार में कलह रहता है, पति – पत्नी में प्रेम व सामंजस्य नहीं रहता। नाड़ी दोष से युक्त दंपत्ति को संतान प्राप्ति नहीं होती यदि संतान हो जाए तो वह स्वस्थ नहीं होती । लड़का – लड़की दोनों के ही परिवार जनों को कष्टों का सामना करना पड़ता है, परिवार के सदस्यों की मृत्यु होने लगती है जिसका निम्मित प्रायः रोग व एक्सीडेंट होते हैं। दंपत्ति व परिवार जनों को मृत्यु तुल्य कष्टों का सामना करना पड़ता है ।

यही कारण है कि इस महादोष से बचने के लिए ज्योतिष के ग्रंथों में इसके प्रति विशेष रूप से चेतावनी भी दी गयी है।

शास्त्रों में नाड़ी दोष का उल्लेख

भगवान श्री राम के गुरु ऋषि वशिष्ठ जी ने स्पष्ट कहा है कि –
नाड़ी दोषे भवेन्मृत्यु गुणैः सर्वैः समन्वितः
( वशिष्ठ संहिता, अध्याय 32 श्लोक 188 )


अर्थ– कुंडली में सभी गुण मौजूद होने पर भी नाड़ी दोष में प्रेम या विवाह करने से निश्चित रूप से मृत्यु हो जाती है। यह महाअपराध एवं महापाप है, ऐसे प्रेम व विवाह को त्याग देना चाहिए।

मध्यनाडी पतिहन्ति पार्श्वेनाड़ी तु कन्याकाम
तस्मान्नाड़ो सदा त्याज्या दम्पत्यो शुभमिछुता

( वशिष्ठ संहिता अध्याय 32 श्लोक 189 )


अर्थ – मध्य नाड़ी दोष होने पर प्रेम या विवाह करने से निश्चित ही वर की मृत्यु होती है और अन्त्य नाड़ी दोष में कन्या की मृत्यु होती है, इसमें किंचित भी कोई संदेह नहीं है इसलिए वर कन्या का भला चाहने वालों को, अर्थात उनके माता, पिता, भाई-बहन तथा अन्य कुटुंबजनों को ऐसे प्रेम या विवाह का समर्थन भूलकर भी नहीं करना चाहिए।

भगवान महादेव जी ने विवाह पटल में स्पष्ट कहा है कि _
भकूट मैत्री खलु वश्यवर्णौ राशेर्गुणाः पंचमकं च दूरम
नाड़ी गणो योनियुता च तारा सवल्लभा चेति वदन्ति सन्तः


अर्थ– मैं शिव सत्य कह रहा हूँ कि नाड़ी, भकूट ,योनि, तारा, गण, मैत्री, वर्ण, वश्य सर्व कूट के उचित मिलान पर ही प्रेम या विवाह शुभ होता है अन्यथा प्रेम या विवाह किसी भी प्रकार से कदापि नहीं करना चाहिए।

भगवान ब्रह्मा जी के पुत्र देवर्षि नारद जी ने स्पष्ट कहा है कि –
एकनाड़ी विवाहश्च गुणैः सर्वैः समन्वितः
वर्जनीयः प्रयत्नेन दम्पत्योर्निधनं यत
(बृहद दैवज्ञरंजनम, अध्याय 71 श्लोक 401)


अर्थ – भले ही वर कन्या में सभी उत्तम गुण मौजूद हों और सर्वगुण संपन्न हो, लेकिन फिर भी यदि नाड़ी दोष है तो किसी भी हालत में ऐसा प्रेम या विवाह नहीं करना चाहिए अन्यथा निश्चित रूप से मृत्यु होती है और महाविनाश होता है। अतः ऐसे प्रेम व विवाह का त्याग कर देना चाहिए।

भगवान ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि मनु जी ने स्पष्ट कहा है कि –
त्रिनाड्यां तु समायोगः सर्वत्रानिष्टकारकः
( मुहूर्त चिंतामणि, अध्याय 6 श्लोक 34-35 )


अर्थ – नाड़ी दोष में प्रेम या विवाह करने से भयंकर महाविनाश और महानिष्ट होता है।

भगवान श्री कृष्ण जी के गुरु ऋषि गर्ग जी ने स्पष्ट कहा है कि –


संलिष्टा मध्यनाडी तु पुरुषं हन्ति वेगतः
संलिष्टा पार्श्वनाडी तु कन्यकां हन्त्य संशयः तु
आसन्ना त्वेकनाड़ी स्यादासन्नमृतिदायिनी
दूरस्था चौकनाड़ी स्याद्दूरा निष्टस्य कारिणीति
(मुहूर्त चिंतामणि, अध्याय 6 श्लोक 34-35)


अर्थ– मध्य नाड़ी दोष होने पर प्रेम या विवाह करने से वर की मृत्यु होती है और अन्त्य नाड़ी दोष से कन्या की मृत्यु होती है। अतः नाड़ी दोष में प्रेम अथवा विवाह करना निश्चित ही मृत्युदायक होता है। ऐसे प्रेम या विवाह को तुरंत त्याग देना चाहिए।

काशी विद्वत परिषद के आचार्यों ने कहा- इस घातक दोष से बचकर रहे युवा पीढ़ी

ज्योतिष एवं आयुर्वेद के महत्व को ‘उजागर करने के लिए गत दिनों सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय मैं एक अभूतपूर्व सम्मेलन का आयोजन हुआ। काशी विद्वत परिषद के विद्वानों प्रोफेसर रामचन्द्र पांडे, प्रोफेसर उमाशंकर शुक्ल, प्रोफेसर विनय कुमार पांडे, प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी, प्रोफेसर अमित कुमार शुक्ल, प्रोफेसर राजा पाठक, प्रोफेसर मधुसूदन मिश्र ने सम्मलेन में पहुंचकर ज्योतिष के प्राचीन विज्ञान में चौंकाने वाले विषयों का खुलासा किया, जिसमें उन्होनें नाड़ी दोष से होने वाले घातक परिणामों पर विशेष रूप से प्रकाश डाला और युवा पीढ़ी से इसके प्रति जागरूक होने की गुहार लगायी। सभी विद्वानों ने स्पष्ट रूप से घोषित किया कि नाड़ी दोष एक जानलेवा दोष है जो तब उत्पन्न होता है जब आपस में प्रेम व विवाह करने वाले लड़का- लड़की दोनों की नाड़ी एक समान हो। नाड़ी दोष में प्रेम करने से अथवा विवाह करने से लड़का- लड़क में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है उन्हें मृत्यु-तुल्य कष्ट भोगना पड़ता है। परिवार के सदस्यों पर भी इस दोष का बुरा प्रभाव पड़ता है, अनेकों संकट उन्हें घेर लेते हैं। ज्योतिष में नाड़ी दोष को महादोष कहा गया है, जिसके बारे में नारद संहिता, वशिष्ठ संहिता, मनु संहिता, बृहस्पति संहिता, बृहददैवज्ञरंजनम जैसे सभी प्रमुख एवं प्राचीन ज्योतिष के ग्रंथों में वर्णन मिलता है। इन ग्रंथों का हवाला देते हुए सम्मलेन में मौजूद विद्वत मंडली ने बताया कि नाड़ी दोष का किसी भी प्रकार के पूजा- पाठ, मन्त्र-जाप, यज्ञ-हवन अथवा दान-कर्म से कोई उपाय या परिहार नहीं होता। इसीलिए नाड़ी दोष से युक्त सम्बन्ध को त्याग देने में ही समझदारी है। धन कमाने के लोभ से जो पंडित ब्राह्मण नाड़ी दोष का उपाय करने की भ्रान्ति फैलाते हैं वे घोर नरक भोगते हैं ऐसा बृहस्पति संहिता में लिखा है। विद्वत मंडली ने कहा कि इस महत्वपूर्ण विषय के बारे में आज का अधिकांश युवा वर्ग नहीं जानता। पूर्व काल में हमारे पूर्वजों को इसका पूरा ज्ञान होता था, वे किसी भी प्रेम सम्बन्ध या विवाह के बंधन में बंधने से पहले नाड़ी दोष का विशेष ध्यान रखते थे क्योंकि इस एक दोष से पूरे कुल का विनाश होता है। जिस प्रकार सरकार ने कोरोना काल में इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए जन-जन तक चेतना पहुंचाई, उसी प्रकार नाड़ी दोष भी एक महामारी की तरह आज की युवा पीढ़ी को अपनी चपेट में ले रहा है। लाखों-करोड़ों युवक- युवतियों का जीवन नाड़ी दोष में सम्बन्ध बनाने की वजह से बर्बाद हो रहा है।

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One Comment

  • CHETAN YADAV November 28, 2023

    Sure

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