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अहंकार का परिणाम

विनम्रता व समर्पण ही व्यक्ति को महान बनाती है और परमात्मा तक पहुंचा देती है। जब तक मनुष्य विनम्र होगा और अहंकार रहित होगा तब तक उसमें विकार नहीं आता। वह सतत् ऊपर की ओर बढ़ता जाता है। लेकिन प्रायः ऐसा होता है कि जैसे ही उसे कोई मुकाम मिल जाता है वह वही रुक जाता है। इतना ही नहीं कुछ समय पश्चात् वह अहंकार भाव से भर जाता है। उसकी सोच यह होती है कि जो कुछ भी मैंने प्राप्त किया है वह मैंने अपनी योग्यता से किया है। इसमें किसी का कोई योगदान नहीं है। ऐसे कई उदाहरण हैं कि विश्व की बड़ी हस्तियों ने अपनी विनम्रता व पाठ के प्रभाव से उच्च पद को प्राप्त किया लेकिन पद पर पहुंचने के उनमें अहंकार आ गया और पाठ से विमुख हो गए। इसका परिणाम यह निकला कि उनका पुनः पतन हो गया। तपोराज तप से राज्य की प्राप्ति होती है और तप के क्षय होने पर पुनः नर्क की प्राप्ति हो जाती है। अतः तप करते रहना चाहिए, सत्य को कभी नहीं भूलना चाहिए। 

युधिष्ठिर को अपनी सच्चाई गर्व हो गया था लेकिन एक झूठ के कारण उन्हें भी नर्क भोगना पड़ा था। महाभारत युद्ध में उन्होंने कहा कि अश्वत्थामा मारा गया जबकि अश्वत्थामा नाम का हाथी मारा गया था। इसी अर्द्धसत्य ने उन्हें नर्क की पीड़ा भी अंतिम समय में दी थी कि उनकी तब उंगली गल गई। थी जब वे स्वर्गारोहरण कर रहे थे। बालि ने भगवान राम से पूछा कि मुझे आपने क्यों मारा? क्या मैं आपका बैरी हूं और सुग्रीव प्यारा है? भगवान ने कहा कि जो व्यक्ति विनम्रता को छोड़कर अहंकार के वश होकर गलत कार्य करने लगता है और मर्यादाओं को भंग करता है, उसे दंडित करने में कोई बुराई नहीं है। तुमने अहंकारवश अपने भाई का राज्य छीन लिया और उसकी पत्नी को भी अपने घर में पत्नी के रूप में रख लिया है। अतः तुम जैसे दोषी को मृत्युदंड देने में कोई पाप नहीं है। इसी प्रकार भीष्म पितामह जब कुरुक्षेत्र के मैदान में शरशैय्या पर लेटे हुए थे तब भगवान श्रीकृष्ण उनसे मिलने के लिए आए। भीष्म पितामह ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि हे प्रभु, मैंने सारा जीवन धर्माचरण में व्यतीत किया और अपनी प्रतिज्ञा का वहन किया। लेकिन क्या कारण है कि अंतिम समय में मुझे तीरों की नोक पर लेटना पड़ रहा है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि हे भीष्म, आप सभी के लिए और स्वयं मेरे लिए भी वंदनीय हो । आपका प्रश्न जायज है। आपने उम्र भर अपने कर्तव्यों का पालन किया और पूरे कुल का संरक्षण व संवर्धन प्रदान किया। आपको याद नहीं है कि जब आप युवावस्था में थे तब आप में इतना अहंकार था कि किसी को कुछ नहीं समझते थे। आपने युद्धों में कितने ही सैनिकों व जीवों का संहार किया है। शिकार में न जाने कितने पशुओं का वध किया है। (बोधगया समागम)

प्रभु कृपा पत्रिका,जनवरी, 2019

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