व्यावहारिक जगत और आधुनिक युग ग्रहण के प्रभाव को वहीं तक परिसीमित मानता है जहां पर ग्रहण दृष्टिगोचर होता है। सूतक काल भी वहां मान्य नही होता जहां ग्रहण दिखाई नही देता। इस विषय में परम पूज्य सदगुरुदेव जी ने ऐसे अद्भुत रहस्य उद्घाटित किए जहां पहुंचकर ग्रन्थ शास्त्र भी मौन हो जाते हैं।
ज्योतिष और आधुनिक जगत दोनों ग्रहण के खगोलीय प्रारूप की वार्ता करते हैं। ग्रहण के प्रारूप को समझाते हुए परम पूज्य सदगुरुदेव जी ने भगवान राम और हनुमान जी की एक अद्भुत वार्ता का उल्लेख किया। गुरुदेवजी ने उल्लेख किया कि भगवान हनुमान जी हर विषय के ज्ञाता हैं। यह सारा ज्ञान भगवान हनुमान जी को भगवान सूर्य ने दिया था।
गुरुदेवजी ने एक विलक्षण घटना का उल्लेख किया जिसमें ज्ञान देने वाले ज्ञान लेने वाले से भी ज्यादा विनम्र थे जो कि सामान्य स्थिति से भिन्न है। यह घटना है भगवान राम और हनुमान जी के वार्तालाप की जिसमें भगवान राम जी गर्व से पूछ रहे हैं और हनुमान जी दंडवत प्रार्थना करके ज्योतिष के विषय में भगवान राम जी को बता रहे हैं। हनुमान जी ज्ञान दे रहे थे पर अति विनम्र भाव से भगवान राम जी से पूछ रहे हैं कि हे भगवन! आप बताएं मैं किस विषय पर बोलू, आपकी क्या सेवा करूँ ?
भगवान राम अवलोकन कर रहे थे कि हनुमान के पास हर विषय का ज्ञान है। ये सूर्य चंद्रमा को भी अधीन कर सकते हैं। ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं।
हनुमान जी भगवान राम से भी शक्तिशाली हैं। राजा दशरथ के बेटे राम से शक्तिशाली हैं, भगवान राम से नही।
एक राम दशरथ का बेटा,
एक राम घट घट में लेटा (जो कण कण में है)
एक राम है जगत पसारा (जिसने जगत को पैदा किया है)
एक राम है जगत से न्यारा (जो जग से पार है) – इस राम को कोई नही मिटा सकता।
यह राम हनुमान को भी मिटा सकते हैं। पूरे जगत को मिटा सकते हैं।
भगवान राम देख रहे थे कि हनुमान जी को ज्योतिष एवं अनंत विषयों का ज्ञान लेकर कहीं अहंकार तो नही हो गया ?
पर उन्होंने देखा कि हनुमान जी में ज्ञान की वार्ता करते हुए लेश मात्र भी अहंकार नहीं था।
गुरुदेवजी ने समझाया कि ज्योतिष और अध्यात्म दो अलग विषय हैं, ज्योतिष अध्यात्म नही बन सका। ज्योतिष अध्यात्म के बारे में केवल बात करता है। भगवान राम और हनुमान जी का संवाद भी खगोलीय ज्योतिष का था।
यह विषय मूल तत्व का है, तत्ववेत्ताओं और ब्रह्मवेत्ताओं का है। बुद्धीजीवियों और ज्योतिष की समझ से पार का विषय है। सदगुरुदेव जी समझाते हैं कि भगवान राम और भगवान कृष्ण की एक सुई जितनी बात भी हमने नही जानी और ना ही किसी ने लिखी। रामायण और रामचरित्रमानस भगवान राम के प्रारूप का जो समुद्र है उसकी लहर मात्र ही उद्घाटित करते हैं। जो भगवान वाल्मीकि जी ने प्रगट किया वह भगवान राम के महासागर के लहर की एक बूंद मात्र है।
भगवान राम जी हनुमान जी को देख रहे थे और उनसे पूछ रहे थे कि जगत में इतने ज्ञान है पर आप मुझे ज्योतिष की बात ही क्यों बताना चाहते हैं ?
भगवान हनुमान ने कहा प्रभु ज्योतिष का ज्ञान प्रत्यक्ष है, तथ्यगत है। आध्यात्म और अन्य विषयों का तो पता ही नही चलता कि अगले पल क्या हो जाए।
इस पर गुरुदेवजी ने उल्लेख किया कि ज्योतिष का ज्ञान तत्थ्यगत है पर सत्यगत नही है। हम भगवान कृष्ण को मानते हैं कि इतनी रानियां हैं, इतने बच्चे हैं। यह तथ्य भी नही है, सत्य तो बहुत दूर की बात है।
ज्योतिष के विषय में चर्चा करते हुए भगवान राम हनुमान जी से गर्व से कहते हैं कि मुझे अपरा की बात नही करनी। हनुमान जी दंडवत प्रणाम करके बैठे रहे। भगवान राम तेज़ आवाज़ में बोले हनुमान तुम सूर्य से यह क्या ज्ञान लेकर आ गए ? यह तो शिक्षा है, यह ज्ञान मन से है। भगवान राम जी डांट रहे हैं कि हनुमान तुम यह क्या सीख कर आ गए ? क्यों गए थे यह ज्ञान लेने ? किस से पूछ कर गए ? हनुमान जी दंडवत प्रणाम कर के सुन रहे थे। हनुमान जी ने आंख उठाकर नहीं देखा।
अध्यात्म का ज्ञान मन और बुद्धि से पार है। चन्द्रमा मन स्वरुप है, सूर्य आत्मा स्वरुप है। चन्द्रमा का सारा प्रभाव मन पर पड़ता है। जिसका चन्द्रमा कमज़ोर होगा वह अहंकार की बात करेगा। जिसका सूर्य प्रगाढ़ होगा वह अपरा प्रकृति की बात ही नही करेगा। ग्रहों का प्रभाव दुर्गा मां को छोड़कर भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश सभी देवी देवताओं पर भी पड़ता है।
आगे सदगुरुदेव जी ने अभूतपूर्व ज्ञान दिया कि जो सूर्य ग्रहण का प्रभाव है वह जहां ग्रहण दृष्टिगोचर नही होता वहां ज्यादा लगता है। यह सोच, समझ, मन, बुद्धि से पार का विषय है।
सदगुरुदेव जी ने समझाया – बरसात होती है एवेरेस्ट पर तब एवेरेस्ट पर रहने वाले चिंतित हो जाते हैं कि नियमित उपयोग का पानी कहां से आएगा। वो बरसात का जल नही पी सकते। पानी की सबसे ज्यादा कमी ऊंचाई पर जल के स्त्रोत्र के पास होती है और सबसे ज्यादा बीमारियाँ वहां होती है जहां पानी जाकर ठहरता है। दूर जहां जाकर पानी ठहरता है वहां का पानी सबसे खराब होता है।
जहां सूर्य ग्रहण लगा हुआ है या दृष्टिगोचर हो रहा है वहां प्रभाव बहुत कम होगा। जहां नही लगा वहां ज़्यादा होगा, वहां ज्यादा रोग आएंगे, वहां ज्यादा कष्ट आएंगे।
जब महाभारत हुआ, सूर्य ग्रहण लगा। युद्ध खत्म हुआ, तब सूर्य ग्रहण लगा। तब सबसे ज़्यादा पाप वहां लगा जहां ग्रहण नही लगा था। युद्ध वाले तो सब उसी क्षण मुक्त हो गए।
आगे पूज्य गुरुदेवजी ने समझाया सबसे ज्यादा बीमारियां तब होंगी जब गर्मी आने वाली है या जाने वाली है, बीच में कम होती हैं। ज्यादा ठंड में नही होती, ज़्यादा गर्मी में नही होती। शिमला में बरसात हो रही है, आप दिल्ली में बैठे हैं तो सबसे ज़्यादा ठंड का ख़राब प्रभाव वहां पड़ेगा जहां बरसात नही हुई। खासी, ज़ुकाम बीमारियाँ वहां ज़्यादा होंगी जहाँ बरसात नही हुई। तेज़ बरसात से छत पर प्रभाव नही होगा, पानी निकल जायेगा लेकिन दीवारों में जहां जाएगा वहां परेशानी होगी।ग्रहण का यह सत्यगत ज्ञान किसी ग्रन्थ में नही है। ग्रंथों से पार का यह ज्ञान मन – बुद्धि से पार का विषय है। जो हम देख रहे हैं, जो हम पढ़ रहे हैं, उससे निकृष्ट कोई चीज नही है। यह सब अपरा है ।
सूर्य को पता क्या है? सूर्य से यह तुम क्या शिक्षा लेकर आए हो हनुमान, भगवान राम ने कहा। हनुमान जी की आंख नहीं उठी। भगवान राम स्वयं सूर्य हैं । भगवान गाली नही निकालते, लेकिन परीक्षा लेने के लिए कि इसको कही पीड़ा तो नही हो रही है, गाली निकालते हैं कि हनुमान तुम क्या बेकार के काम कर आए ?
पूज्य गुरुदेवजी ने आगे समझाया जहां सूर्य ग्रहण नही हैं, वहां ज्यादा ध्यान रखें। जहां ग्रहण दृष्टिगोचर होगा वहां प्रभाव तो होगा लेकिन कम होगा।
जहां ग्रहण दृष्टिगोचर नही हो रहा, वहां प्रभाव ज्यादा होगा। जो सारे कीटाणु जीवाणु हैं, यह सूर्य चन्द्रमा से हैं।
आगे पूज्य गुरुदेवजी ने समझाया कि कभी देखा है किसी गुरु ने कहा कि मेरे जो शिष्य का नाम लेगा, हनुमान का, उसे कोई रोग नही आएगा। इस मंत्र में भगवान राम ने विभीषण से कहा है तुम भगवान हनुमान का पाठ करो, तुम्हे ग्रहण का प्रभाव नही लगेगा।
विभीषण कहते हैं, हनुमान ? प्रभु हनुमान तो आपका शिष्य है।
विभीषण आश्चर्यचकित रह गए!
आगे पूज्य गुरुदेवजी ने समझाया औषधियां कोई काम नहीं करती। औषधियों में मंत्र विज्ञान, अश्विनी कुमारों का जो ज्ञान है, भगवान राम, भगवान हनुमान, भगवान शिव, मां दुर्गा का जो पाठ है वह औषधियों में जाकर काम करता है। औषधियों में कुछ नही है। भगवान शिव ने आयुर्वेद के ग्रंथों में स्पष्ट कहा है कि बिना मंत्रों के औषधियां सूखी लकड़ी के समान हैं, कोई काम की नही है।
इस समय, ग्रहण सूतक के समय आप जितने मंत्र जपेंगे, वह जल्दी सिद्ध हो जाएंगे। आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें, गणपति स्तोत्र का पाठ करें, हनुमत स्त्रोत्र का पाठ करें।
जो भी विज्ञान देख रहा है, उल्टा देख रहा है। जो भी पाश्चात्य संस्कृति कह रही है, वो सारा ही गलत कह रही है । इसीलिए बीमारियां हो रही हैं।
वे एक पहलू देख रहे हैं, वे समुंद्र की लहरों को देख रहे हैं, वे समुंद्र को नही देख रहे। उनके पास ज्यादा पैमाना नही है। उनके पास परा का विज्ञान ही नही है।
वेद उपनिषद् भी गुरु के इस असीम ज्ञान को नेति नेति कहकर मौन हो जाते हैं।
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए मूल वीडियो देखें –
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