ज्योतिष एक अद्भुत विज्ञान है जिसे साक्षात ब्रह्मा जी ने मानवता के कल्याण के लिए प्रकट किया था। ज्योतिष को वेद का नेत्र भी कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र के अधीन ही संपूर्ण संसार विद्यमान है। काल का ज्ञान भी ज्योतिष के अधीन ही है और इसी की गणना के अनुरूप सभी ग्रह मनुष्य को बल प्रदान करते हैं और उनके प्रत्येक कार्य को प्रभावित करते हैं। ज्योतिष विज्ञान त्रिकालदर्शी के रूप में मानवता के शुभ और अशुभ कार्यों का निर्धारण करने वाला अकाट्य विज्ञान है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, जन्म, मृत्यु सहित हमारे जीवन से जुड़े सभी विषयों का निर्धारण करने वाला ज्योतिष विज्ञान ही एकमात्र साधन है।
ज्योतिष विज्ञान में ग्रहों की चाल और गणना के अनुरूप हमारे जीवन का काल निर्धारित होता है। वेदों-शास्त्रों में ज्योतिषीय गणनाओं के अनुरूप शुभ और अशुभ कार्यों का निर्धारण किया जाता है जिनमें राहु काल सबसे प्रमुख है। किसी भी शुभ कार्य को करने से पूर्व मुहूर्त देखने का जो शास्त्रोक्त विधान है उसमें राहु काल की प्रमुख भूमिका रही है। सनातन धर्म की तरह ही सभी धर्मों में शुभ और मांगलिक कार्य करने से पूर्व शुभ मुहूर्त पर विचार किया जाता है। अशुभ मुहूर्त में किया गया कोई भी मांगलिक कार्य कभी शुभ नहीं होता ।
यह सर्वविदित है कि नवग्रहों में शनि को कर्म फलदाता कहा जाता है। शनि महाराज हमारे कर्मों के अनुकूल ही फल प्रदान करते हैं। प्रायः लोग शनि से बहुत अधिक भयभीत रहते हैं परंतु शनि से भी प्रचंड प्रकोप राहु देव का माना जाता है। जितना भय लोगों को शनि से होता है उससे कहीं अधिक भय राहु का होता है। इसका कारण यह है कि राहु को स्वयं भगवान ब्रह्मा जी ने समस्त प्रकार की अशुभ घटनाओं, पूर्वाभासों एवं अपशगुनों का राजा होने की उपाधि दी है। इसका वर्णन हरिवंश पुराण में देखने को मिलता है। जब भी हमें जीवन में कुछ अशुभ होने का आभास होने लगता है तो यह समझ लेना चाहिए कि राहु का प्रकोप शुरू हो गया है।
गरुड़ पुराण में उल्लेख मिलता है कि सभी ग्रहों का प्रतिदिन एक निश्चित अवधि के लिए पृथ्वी पर विशेष प्रभाव पड़ता है यह अवधि लगभग डेढ़ घंटे की होती है। प्रतिदिन सूर्य से लेकर चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि और राहु सहित सभी ग्रह अपने-अपने समय के अनुरूप पृथ्वी पर रहने वाले समस्त जीवों पर विशेष प्रभाव डालते हैं। इस अवधि को शास्त्रों में यामार्ध कहा गया है। प्रत्येक ग्रह के यामार्ध को उसका भोगकाल कहते हैं अर्थात वह काल जिसमें वह ग्रह विशेष रूप से बलवान होकर कार्य करता है।
ज्योतिष शास्त्र में शुभ और अशुभ एवं मांगलिक कार्यों को संपन्न करने से पूर्व राहु काल को देखा जाता है। शुभ कार्य करने से पूर्व राहु काल पर भली भांति विचार करने के बाद ही मांगलिक कार्यों का निर्धारण होता है। शुभ मुहूर्त के अतिरिक्त मनुष्य के जीवन में अनेक ऐसे अशुभ मुहुर्त भी होते हैं जिनसे वह अनजान रहता है। अशुभ मुहूर्त में किया गया कोई भी कार्य सफल नहीं होता। उस कार्य में अनेक प्रकार की बाधाएं आती हैं इसलिए राहु काल की गणना को समझना प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यंत अनिवार्य हो जाता है।
राहु काल के समय भूलकर भी नया बिजनेस शुरू नहीं करना चाहिए। इस काल में शुरू किए गए बिजनेस कभी सफल नहीं होते या बिजनेस में तरह-तरह की बाधाएं आती हैं। राहु काल में किसी भी प्रकार का अनुष्ठान और यज्ञ इत्यादि वर्जित हैं। यदि इस समय आप यज्ञ इत्यादि करते हैं तो उनका कोई फल नहीं मिलता अपितु हानिकारक परिणाम भी मिल सकते हैं। हर प्रकार के शुभ कार्यों के लिए भी राहु काल वर्जित बताया गया है । विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, विशेष व्यक्ति से मिलने वाली अपाइंटमेंट, निर्माण कार्यों का उद्घाटन इत्यादि अनेक प्रकार के ऐसे मांगलिक कार्य हैं जिनमें राहु काल का विशेष ध्यान रखा जाता है। राहु काल में किए जाने वाले मांगलिक कार्य अनेक प्रकार की बाधाओं और अनिष्टों को पैदा करते हैं इसलिए प्रतिदिन राहु काल का विशेष ध्यान रखना चाहिए। राहु काल को भली प्रकार समझने के लिए यह जानना अत्यंत जरूरी हो जाता है कि राहु है क्या और यह छाया ग्रह हमारे जीवन में क्यों महत्वपूर्ण है? राहु का विचार किए बिना कुंडली विश्लेषण सफल नहीं माना जा सकता। मांगलिक कार्यों के अतिरिक्त राहु का हमारे पूरे जीवन में भी व्यापक प्रभाव पड़ता है। असुर और राक्षसी ग्रह होने के कारण राहु को क्रूर ग्रह बताया गया है जो धर्म और सात्विकता से सदैव दूर रहता है। मांगलिक कार्य धर्म के अधीन आते हैं इसलिए राहु अपने विशेष समय में जिसे हम राहु काल कहते हैं, इन कार्यों को बाधित करता है। कुंडली में भले ही राहु ग्रह को छाया ग्रह बताया गया है लेकिन इसकी छाया अत्यधिक भीषण परिणाम प्रदान करने वाली होती है।
राहु यदि अच्छा है तो अच्छे परिणाम देता है मगर यदि बुरा है तो व्यक्ति के जीवन में हर कदम पर बाधा उत्पन्न करता है। छल, कपट से अमृत पीकर अमर होने के कारण राहु के प्रभाव से कोई नहीं बच पाया। शास्त्रों में राहु को दुख का कारक बताया गया है। जिस व्यक्ति की कुंडली में राहु खराब अवस्था में होता है वह व्यक्ति अनेक प्रकार के दुखों से ग्रस्त रहता है। ऐसे व्यक्ति के लिए कहा जाता है कि वह सुख में भी सदैव दुख का अनुभव करता है। खराब राहु हमेशा अशुभ फल प्रदान करने वाला बताया गया है। जिस जातक की कुंडली में राहु खराब होता है उसे हर कार्य में अशुभ फल प्राप्त होते हैं। राहु की महादशा और अंर्तदशा के समय अशुभ फल और अधिक बढ़ने लगते हैं इसलिए ज्योतिष शास्त्र में राहु को शांत करने के उपायों का वर्णन किया गया है।
बुरे प्रभाव से ग्रस्त राहु कानून और धर्म विरोधी हो जाता है। जिस व्यक्ति का राहु खराब होता है वह हमेशा धर्म और अपने गुरुओं की निंदा करता है। ऐसा व्यक्ति धर्म से दूर भागता है और उसका झुकाव हमेशा अधार्मिक कार्यों की ओर होता है। राहु के बारे में माना जाता है कि यह अनैतिक और अधार्मिक कार्यों में संलिप्त रहता है और इसी से उसकी शक्ति बढ़ती है। राहु को मादक पदार्थों और तामसिक प्रवृत्ति का कारक भी बताया गया है । जिस व्यक्ति का राहु खराब होता है वह शराब, तंबाकू, गांजा इत्यादि अनेक प्रकार के नशों में लिप्त रहता है। नशा राहु की खुराक है इसलिए हर प्रकार के नशों से बचना चाहिए।
खराब राहु जालसाजी, धोखे, कुटिलता, राजनीति, छलकपट आदि का भी कारक है। जिन व्यक्तियों का राहु खराब होता है वे छलकपट और कुटिल राजनीति से अपने समस्त कार्यों का निर्वाह करते हैं। ऐसे व्यक्ति विश्वास के योग्य नहीं होते जिनका राहु खराब होता है। असुर प्रवृत्ति का होने के कारण राहु आक्रामक और क्रोधी स्वभाव का भी होता है। कुंडली में राहु खराब होने के कारण व्यक्ति क्रोधी और आक्रामक स्वभाव का हो जाता है और बात-बात पर चिड़चिड़ा हो जाता है। तामसी प्रवृत्ति बढ़ी होने के कारण ऐसा व्यक्ति सदैव मानसिक तनावों से घिरा रहता है और पागलपन का भी शिकार हो जाता है।
देवताओं के लिए भी राहु हमेशा एक चुनौती रहा है। जिस घर में राहु का स्थाई निवास हो जाता है वहां हमेशा अशांति और क्लेश का वातावरण रहता है। बात-बात पर झगड़े और विवाद बढ़ने लगते हैं। परिवार में सुख-शांति और वैभवता समाप्त होने लगती है। हर प्रकार के सुखों में कमी आने लगती है और व्यक्ति न चाहते हुए भी असाध्य दुखों का शिकार हो जाता है। यदि राहु अशुभ हो तो व्यक्ति अनिद्रा और मानसिक रोगों से ग्रस्त रहता है।
राहु को भ्रम और का आशंकाओं का देवता भी बताया गया है। नीच अवस्था में आने पर राहु भ्रम और साजिशों की रचना करने लगता है। व्यक्ति को समझ में नहीं आता कि वह क्या करे और क्या न करे। खराब राहु वाला व्यक्ति जीवन भर भय और आशंकाओं से घिरा रहता है। वह बिना वजह भयभीत और बेचैन रहता है। ऐसे व्यक्ति को हमेशा लगता है कि शत्रु उसका सब कुछ समाप्त करने वाले हैं मगर हकीकत में ऐसा होता नहीं है। राहु का खराब फल मिलने के कारण बेचारा व्यक्ति बेवजह ऐसे शत्रुओं को पैदा कर लेता है जो वास्तव में होते ही नहीं हैं।
राहु को बाधाओं का कारक ग्रह माना गया है। यदि कुंडली में राहु खराब है तो व्यक्ति के हर कार्य में रुकावटें और बाधाएं आती हैं। उसका कोई भी कार्य समय से पूरा नहीं हो पाता। ऐसा व्यक्ति सदैव संघर्षों में लगा रहता है और शुभ परिणामों से वंचित हो जाता है क्योंकि राहु उसके हर कार्य में बाधाएं उत्पन्न कर देता है। अशुभ राहु अनेक प्रकार के रोगों का भी कारक है। राहु के अशुभ फल मिलने के कारण व्यक्ति सदैव रोगों से घिरा रहता है और भ्रमित होकर अस्पतालों के चक्कर काटता रहता है। राहु की भ्रमित दृष्टि के कारण ऐसा व्यक्ति स्वयं को रोगी मानने लगता है। उसे असाध्य रोगों का भय सताता रहता है। व्यक्ति सदैव पेट और गैस के रोगों से पीड़ित रहता है क्योंकि राहु गैस और गंदगी का भी कारक है।
ऐसा नहीं है कि राहु केवल बुरे फल ही देता है। अच्छा राहु व्यक्ति को रंक से राजा भी बना देता है। जिन व्यक्तियों की कुंडलियों में राहु बलवान होता है वे राजनीति, कूटनीति और अनेक प्रकार के व्यवसायों में सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच जाते हैं। ज्योतिष में राहु को जहां एक ओर क्रूर और तामसी प्रवृत्ति का बताया गया है वहीं दूसरी ओर उसे वैभव का देवता भी कहा गया है। जिसका राहु मजबूत होता है ऐसा व्यक्ति हर प्रकार का वैभव, सुख और यश-कीर्ति प्राप्त करता है। राहु अप्रत्याशित घटनाओं का कारक है इसलिए इस ग्रह के अच्छा होते ही व्यक्ति अचानक गरीब से अरबपति भी बन सकता है, साधारण पद पर आसीन व्यक्ति अचानक सर्वोच्च पद प्राप्त कर लेता है।
परम पूज्य सद्गुरुदेव जी देश विदेश के भाई-बहनों को जो अद्भुत शास्त्रोक्त पाठ प्रदान करते हैं उनसे राहु सहित हर प्रकार के नकारात्मक ग्रह दोषों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। ऐसे लाखों, करोड़ों भाई-बहन हैं जो ग्रहों की क्रूर और वक्री दृष्टि के कारण अनेक प्रकार के असाध्य रोगों, दुखों, समस्याओं और बाधाओं से ग्रस्त थे। ऐसे भाई-बहन अद्भुत पाठ से आज हर प्रकार के सुख, वैभव और धन-धान्य से संपन्न हैं। जिन लोगों का व्यापार ग्रह दोषों के कारण समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया था वे आज सफल व्यापारी बन गए हैं। परम पूज्य सद्गुरुदेव जी की कृपा से रंक राजा बन गए, रोगी, निरोगी हो गए, निर्धन धनवान बन गए, अशिक्षित ज्ञानवान बन गए, संतानहीन माता-पिता बन गए और अनेक ऐसे भाई-बहन हैं जो सर्वोच्च संवैधानिक पदों के स्वामी बन गए।
अनेक तर्कशील भाई-बहन जिज्ञासा रखते हैं कि परम पूज्य सद्गुरुदेव जी की कृपा से जब उनका राहु ग्रह शुभ फल दे रहा है तो क्या उन्हें भी राहु काल का पालन करना चाहिए? ऐसे भाई-बहनों को भी शास्त्रों और ज्योतिष विज्ञान का पालन करना चाहिए क्योंकि राहु एक ऐसा ग्रह है जो कहीं ना कहीं अपनी उपस्थिति बनाए रखता है। आपका राहु कितना भी बलवान क्यों ना हो तब भी राहु काल के समय मांगलिक और शुभ कार्यों से बचना चाहिए। राहु काल ज्योतिष विज्ञान पर आधारित है, यह कपोल कल्पित तथ्य नहीं है। प्रत्येक दिन 90 मिनट के लिए कोई भी शुभ कार्य न करें और न ही यज्ञ-अनुष्ठान इत्यादि करें। राहु काल में शांत भाव से सब कार्यों को छोड़कर केवल वही करें जो परम पूज्य सद्गुरुदेव जी ने बताया है।
फरवरी, प्रभु कृपा पत्रिका, 2022
Very good koneleg
Maykhana ,AUM Namo Narayan ji
Guru dev aapko koti koti parma.. Aapni karpa yahi banaye rakhna aapka koit koti dhanewad guru dev 🙏🙏🌹🌹
Guru dev koti koti parma 🙏🙏🌹🌹
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