00:00:36 – यह आश्चर्यजनक अद्भुत सत्य है कि केवल चित्र देखकर रोगों और समस्याओं के विषय में न केवल बताना बल्कि सहज सरल साक्षात समाधान करना। वर्ष 2002 में आस्था चैनल पर प्रसारित कार्यक्रम आयुर्विज्ञान के रहस्य में महाब्रह्मर्षि श्री कुमार स्वामी जी ने 21 वर्ष पहले ऐसा प्रत्यक्ष करके पूरे विश्व को आश्चर्यचकित किया था। यह कार्यक्रम उस समय सबसे अधिक
00:01:08 – लोकप्रिय कार्यक्रमों में एक कार्यक्रम माना गया था। आपकी बारम्बार की माँग पर इस कार्यक्रम के मुख्य अंश यूट्यूब में प्रसारित किए जा रहे हैं।
00:01:22 – ये हमारे पास फोटोग्राफ आयी है मिस्टर पंकज की, तस्वीर देखकर आप बताए की कौन कौन से रोग हो सकते हैं ?
00:01:29 – मिस्टर पंकज की फैमिली में इसको अपस्मार है और इन्हें प्रारंभिक अवस्था में वह प्रारंभ हो चुका है
00:01:38 – और इन्हें मानसिक अवसाद भी काफी रहता है, काफी सोचते हैं, काफी विचारते हैं ये और इनके कभी राइट पैर के हिस्से में
00:01:47 – एक नाड़ी है, उसमें शोथ है, उसमें स्वेलिंग है, उसका ब्रेन से दिमाग से सीधा लिंक है इनके सिर में कभी-कभी काफी दर्द होता है और उस समय उनके पैर के हिस्से में भी वो उसका वो कारण बनता है और इनका पेट काफी समय से साफ नहीं है क्योंकि इनके पिता जी को भी कब्ज का रोग है। इन्हें कब्ज भी नहीं है लेकिन इनका पेट काफी समय से साफ नहीं होता और जब ये बाल्य अवस्था में थे उस समय इन्हें टायफॉईड जब हुआ था तो टाइफाइड के समय में इन्हें टाइफाइड का उपचार नहीं किया था। इन्हें वो बुखार कम से कम तीन-चार मंथ तक लगातार रहा था। उसके बाद से इनके मस्तिष्क में है वो शोथ वरण प्रारंभ हो चुका है।
00:02:28 – तो इनका जो उपचार मैं बताऊँगा उससे वो उनका जो वरण शोथ है वो भी समाप्त हो जाएगा और इनको हर छः महीने में या तीन-चार महीने में एक बार बुखार अवश्य आएगा । उसका कारण है कि इनकी प्लीहा बढ़ी हुई है। उसी समय से इनकी प्लीहा बढ़ी हुई है तो इससे वो रोग भी इनका ठीक हो जाएगा । इनको बार-बार बुखार भी नहीं होगा। एक तो ये जितना हो सके काली मिर्च, बड़ी इलायची, छोटी इलायची, नागरमोथा,
00:02:56 – और सुरंजना के पत्ते और बेरी के पत्ते । यह सभी को मिलाकर उसे सुखालें पहले फिर उसको कूट-पीस लें और गाय के कच्चे दूध के साथ और शहद के साथ दोनों मिला लें। गाय का दूध और उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर उसके साथ ही आधा चम्मच सुबह-शाम खाएं तो ये इनका रोग भी ठीक हो जाएगा। इन्हें जो बार-बार बुखार होता है वो भी ठीक हो जाएगा और ये जो मूर्च्छा का इन्हें कभी-कभी हो जाता है वो भी समाप्त हो जाएगा।
00:03:23 – मैं यह अनुभव अपने पति के बारे में बताना चाहती हूँ। मेरे पति जब 2 साल के थे तब से उनके दौरे पड़ते थे तभी से वो दवाई खा रहे थे। थोड़े बहुत झटके उन्हें कभी-कभी लगते थे। पर पिछली तीन तारिक को रविवार को उन्हें तीन-चार दौरे इकट्ठे पड़े। सुबह के टाइम जब उन्हें 4:30 बजे दौरा पड़ा तो उन्होंने कहा कि मेरा हाथ सुन हो गया। मैं मन ही मन बीज मंत्रों का जाप करती रही तो थोड़ी देर में उन्हें होश आया और उन्होंने कहा की मेरा हाथ ठीक है।
00:04:00 – मैं एक चर्चा आपसे करना चाहुँगा। जैसे विद्वानों का मत है कि जीवन ऊर्जा का बहुत अहम स्थान मानते हैं तो जीवन ऊर्जा का महत्त्व है क्या ? जीवन है या शरीर है या संसार है
00:04:14 – वो अगर उसको गहराई से वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, अध्यात्मिक दृष्टिकोण से, वास्तविकता से देखा जाए
00:04:24 – तो ये जगत ऊर्जा के अलावा और कुछ भी नहीं है। हमें जो दृश्य नज़र आ रहे हैं रंग नज़र आ रहे हैं। ये भी अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से या माइक्रोस्कोप से अगर हम अपने हाथ को भी देखेंगे जैसे दूध है या दही है। अगर आप दही को माइक्रोस्कोप से देखेंगे तो वहाँ आपको दही नाम की वस्तु नजर नहीं आएगी, वहाँ आपको जीवाणु ही नज़र आएँगे, जीवाणु चलते हुए।
00:04:48 – और सूक्ष्म दृष्टि से माइक्रोस्कोप से देखा जाए तो फिर वो ऊर्जा नजर आएगी, ऊर्जा प्रतीत होगी। अभी हमें ये देखने में हमारे हाथ नज़र आ रहे हैं। अगर इन्हें सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए जिसके काफी पॉवरफुल लेन्स हों तो हमें हाथ नज़र नहीं आएगा कुछ जीवाणु चलते हुए नजर आएँगे।
00:05:08 – और भी सूक्ष्म माइक्रोस्कोप से देखा जाए तो ये हमें ऊर्जा नज़र आएगी।
00:05:14 – तो जो भी जगत में नजर आ रहा है ऊर्जा का ही रूप है। ऊर्जा के अलावा और कुछ भी नहीं।
00:05:21 – जो हमे, हमारी दृष्टि को, हमारी आँखों को जो नज़र आ रहा है वह वास्तव में उतना ही नज़र आ रहा है जैसे कि आकाश है। हमें नीला नज़र आता है। ये नीला का मतलब है कि हमारी आँखें इससे ज्यादा देख नहीं सकती। इसलिए अमीन नीला, नीला नज़र आता है। अगर हम इतना दूर और चले जाये तभी ये नीलापन ये ऐसे ही फैलता रहेगा। इतना ही रहेगा।
00:05:42 – तो ये जगत जितना भी है ये ऊर्जाओं का समूह है। ऊर्जाओं का विघटन है, ऊर्जाओं का समन्वय है, ऊर्जाओं का मिलन है, ऊर्जा का आना है, ऊर्जाओं का जाना है।
00:05:54 – तो हमारा जो शरीर है, जो भी ब्रह्मांड में जो-जो प्रतीत होता है वो सारा कुछ हमारे शरीर के अंदर है तो मूल रूप से वैज्ञानिकों ने जैसे एक माना है। अगर ऊर्जाओं को भी आप सूक्ष्म से देखते जाओ तो फिर अंतिम मैं आपको एक तत्व मिलेगा जिसे तोड़ा नहीं जा सकता, जिसे जोड़ा नहीं जा सकता, जिसे जलाया नहीं जा सकता, जिसे किसी तरह से नष्ट नहीं किया जा सकता। वो एक तत्व है जिससे वहाँ ऊर्जा भी आकर जिसका कुछ नहीं करेगी क्योंकि वो ऊर्जा का निर्माण करने वाला तत्व है, उसे ही ऋषि मुनियों ने परमात्म तत्व कहा है, ब्रह्म कहा है।
00:06:33 – अपना अस्तित्व कहा है जो उस तत्व को जान लेता है वो सारे तत्वों को जान लेता है तो उस एक तत्व से तीन की उत्पत्ति हुई है। उसी को ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा गया है। उसके बाद अलग-अलग तत्वों की उत्पत्ति हुई है। उन तत्वों के बाद फिर ऊर्जा का विकास हुआ है तो हमारे शरीर में जो मुख्य तत्व हैं वो सात माने गए हैं । लेकिन जो चाइनीज पैथी है उसे उन्होंने और सूक्ष्म दृष्टि से अलग-अलग फैलादिए हैं। जैसे एक्यूपंकचर में उन्होंने पहले तीन को लिया है, तीन से नौ लिया है। नौ से फिर अलग-अलग तत्व हुए हैं तो जो मूल है वो मूलाधार है क्योंकि जब हमारा जन्म हुआ था तब हम माँ के पेट से मूलाधार से बँधे हुए थे, नाभि से बँधे हुए थे और मूलाधार से सहस्त्रसार की यात्रा है क्योंकि मोस्टली आदमी जितने भी आपको जगत में प्रतीत
00:07:19 – हो रहे हैं, ये सारे काम केंद्रित हैं, वासना से केंद्रित हैं, हमारे जो संबंध है, जो रिश्ते हैं, जो नाते है, जो प्रेम है हमें जो नज़र आ रहा है जगत में ये मेरे भाई बहन हैं, मुझे बड़ा प्रेम कर रहे हैं। ये मित्र हैं मुझे बड़ा स्नेह कर रहे हैं लेकिन जैसे ही उनके मन की विपरीत व्यवस्था आएगी, अगर किसी का जाँच करना हो तो जो आपको प्रेम दे रहे हैं तो आप देखो कि ये प्रेम देने का कारण क्या है? आपके पास धन है, आपका शरीर सुन्दर होगा या आप उनकी मनोकामना पूर्ण कर रहे होंगे या वो जैसा चाहते हैं वैसा कर रहे हो। कभी आप उनके मन के प्रतिकूल करके देखिए । अगर वो वास्तव में आपके मित्र होंगे तब भी आपके प्रतिकूल अवस्था में भी आपसे वैसे स्नेह करेंगे, वैसे प्रेम करेंगे। अगर आपका कोई मित्र हैं, आपको लगता है कि आपका मित्र है, फिर आप गहराई से देखोगे की मैं उसे उसकी आवश्यक वस्तु दे रहा हूँ।
00:08:06 – उसे जो-जो भी आवश्यकता है मैं दे रहा हूँ कभी उसकी अवस्था के अनुकूल आप चल के देखे।
00:08:12 – जैसे वो चाहता है उसे न दें उसके प्रतिकूल चल के भी देखे। अगर उनकी इच्छा के अनुकूल चल रहे हैं वो आपसे प्रेम करेगा। अगर प्रतिकूल चल रहे हैं तो आपसे विद्रोह करेगा, आपसे विरोध करेगा। इसका मतलब है कि इसके साथ रहना भी ठीक नहीं है। इसका विरोध भी ठीक नहीं है। तो ये जो सारा मूल कारण है ये मूलाधार में स्थित हो जाता है, हमारी ऊर्जा का निर्माण करता है तो जब हमारी ऊर्जा मूलाधार से उठके नाभि में आती है, ऐसे अलग-अलग चक्र हैं जो जब आदमी सहस्त्रसार चक्र में पहुँच जाता है तो फिर मूलाधार से उसका संबंध कट जाता है। अनाहत से संबंध कट जाता है जैसे म्यूजिक है, संगीत है, हृदय है, प्रेम है ये हमारे हृदय चक्र में जब वो ऊर्जा आ जाती है, ऊर्जा वही है जब मूलाधार में जाएगी तो वो काम का रूप ले लेगी।
00:08:58 – जब नाभि में आएगी वो दूसरा रूप ले लेगी। जब हृदय में आ जाएगी तो चित्रकार का रूप ले लेगी, प्रेमी का रूप ले लेगी, प्रेमिका का रूप ले लेगी, माँ का रूप ले लेगी, जब हमारी आज्ञा चक्कर में आएगी तो वो वैज्ञानिक का रूप ले लेगी, तब हमारी सूक्ष्म दृष्टि हो जाएगी जब वो सहस्त्रसार में चली जाएगी तो फिर वो सारो से,
00:09:19 – सारो से पार चली जाती है तो फिर उसे कोई भी काम, कोई भी विकार, कोई भी लोभ, कोई भी क्रोध। इसीलिए योगी जब सहस्त्रसार की अवस्था में पहुँच जाते हैं तो उन्हें सारे जगत की जो मोह है वासना है ये पीड़ित नहीं करता, उससे वो परेशान नहीं होते। उन्हें ही योगी कहा गया है, उन्हें ही ब्रह्मनिष्ठ कहा गया है, उन्हें ही ब्रह्मज्ञानी कहा गया है, उन्हें ही तत्त्ववेत्ता कहा गया है उन्हें ही ब्रह्मर्षि कहा गया है जो ऐसे तत्वों को जान लेता है वो अपने शरीर से भी जब चाहे जा सकता है और जब चाहे शरीर में स्थित हो सकता है, फिर शरीर और मन, इन्द्रियाँ उसके अधीन हो जाती है। वो उनके अधीन नहीं होता। अगर जीवन में
00:10:00 – जीवन में ऊर्जा ही न रहे। तो आदमी निष्प्राण है, निष्क्रिय है।
00:10:08 – इसीके योगदान का आभास हो रहा है कि हमारा जीवन जो संचालित हो रहा है, चल रहा है हम देख रहे हैं बोल रहे है, सुन रहे हैं ये जीवन ऊर्जा के कारण ही ऐसा हो पा रहा है।
00:10:22 – तो जो भी हमारे जीवन में सारे संसार में जो हमें प्रतीत हो रहा है या जो दृश्य हमें नजर आ रहे हैं, हम खा रहे हैं, पी रहे हैं, चल रहे हैं। अगर जीवन ऊर्जा ही हमारे शरीर में विद्यमान न हो तो हमारे शरीर का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, मिट जाएगा, लोप हो जाएगा तो जीवन ऊर्जा का इसीसे ही
00:10:41 – ये साफ प्रतीत होता है कि हम जो कर रहे हैं, हमारा जो चरण है, हमारा जो व्यवहार है, ये सारा जीवन ऊर्जा से ओत-प्रोत है तो जीवन ऊर्जा का ही महत्त्व है कि हम सब यहाँ हैं, आप बैठे हैं, हम सुन रहे हैं। ये जो दृश्यमय जगत हमें प्रतीत हो रहा है पृथ्वी घूम रही है। चंद्रमा, सूरज, तारे, वायु, ग्रह या आपस में प्रतिक्रिया कर रहे हैं। ये जीवन ऊर्जा का ही पर्याय है जैसे एक रहस्य और कहा जाता है, विद्वानों का मत है
00:11:10 – कि व्यक्ति के शरीर में सात रंग होते हैं । र जब किसी भी रंग की कमी होती है तो ही व्यक्ति अस्वस्थ होता है, मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से और उसी को पूर्ण करने के लिए तमाम तरह की विधियों अपनाई जाती है। जैसे हमें
00:11:27 – स्थूल रूप से दिखता है, कोई चीज़ हमें नज़र आ रही है तो अगर हम सूक्ष्म रूप से देखें तो वो हमें ऊर्जा का रूप नज़र आएगा।
00:11:35 – जो उसका सूक्ष्म रूप है और जो स्थूल रूप है उसके बीच में रंग जो प्रकाश है क्योंकि प्रकाश ने भी सात रंग हैं, प्रकाश सात रंगों से बना हुआ है तो ऐसे जितना भी जगत है सारा वो सात रंगों से बना हुआ है। सात से ऐसे 14 हो गए ऐसे अलग-अलग जितने भी रंग हैं वो मूल रूप से सात ही हैं और गहराई से देखा जाए तो मूल रूप से तीन रंग हैं, तीन कलर हैं तीन रंगों से फिर आगे सात का निर्माण हुआ। ऐसे सात से 14 हुआ। ऐसे जितनी भी प्रकाश की किरणें है, प्रकाश की किरणों में भी वैज्ञानिक ने सूक्ष्मरूप से देखा जाए तो एक ही तत्व है एक से फिर तीन तत्व है, तीन से फिर आगे अलग-अलग बनते गए तो ये जो ऊर्जा के रूप है, मिनरल्स के रूप है, विटामिन के रूप है, ये भी उसी का पर्यायवाची है।
00:12:22 – तो जिस पैथी ने, अरोमा पैथी ने या कलर थेरेपी ने उनको रंगों के रूप में ले लिया। लेकिन वास्तव में जैसे हमारी सब्जियाँ हैं तो सब्जियों में भी देखा जाए, फल भी देखा जाए तो वो सात रंगों के सारे मिलेंगे जैसे अलग-अलग मौसम में अलग-अलग प्रकार के भोजन आएँगे, अलग-अलग प्रकार के फल आयेंगे, अलग-अलग प्रकार के तत्वों की कमी होगी तो हमारे सिर में जिस तत्वों की कमी हुई है, हो जाती है उसी तत्व को अब जैसे लोहा है। वो काले रंग का है तो काले रंग के जीतने भी खाद्य पदार्थ होंगे। जीतने भी फल होंगे उनमें आयरन जरूर होगा। मतलब ऐसे जो सफेद रंग के हैं उनमें अलग-अलग तत्वों की, प्रोटीन की प्रधानता है। ऐसे जितने भी तत्व हैं वो रंगों से निर्मित होते हैं और जो रंग हैं वो तत्वों से निर्मित होते हैं । ये देखने में अलग-अलग लगता है। लेकिन ये एक ही चीज़ के दो रूप हैं ।
Guruji pranam me Patel Devendra haragovanbhai Patel avdan yog me taderup nahi ho pata to samasya ka samadhan dhan kigia me Gujarat ke unjha tahesil ke brahmanwada village me nagariya para koloni me raheta hu
Guruji pranam me Patel Devendra haragovanbhai Patel avdan yog me taderup nahi ho pata to samasya ka samadhan dhan kigia me Gujarat ke unjha tahesil ke brahmanwada village me nagariya para koloni me raheta hu