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आदर्श गृहस्थ

जिस घर में पति व पत्नी का झगड़ा नहीं होता और शांति रहती है तो वह घर स्वर्ग के समान होता है तथा वे पति-पत्नी पूजनीय होते हैं। हमारे अवतारों ने लीला करके ग्रह-कलेश के दुष्परिणामों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया है। भगवान शंकर की अवज्ञा करके माता सती जब अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ आयोजन में हिस्सा लेने चली गई तब उसका दुष्परिणाम घटित हुआ। पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति भगवान शंकर को पसंद नहीं करते थे अतः अपने यज्ञ आयोजन में समस्त देवताओं को तो उन्होंने आमंत्रित किया लेकिन भगवान शंकर को नहीं किया। जब माता सती कुछ शिवगणों सहित वहां पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि भगवान शंकर का आसन वहां नहीं था और न ही उन्हें यज्ञ के भाग का अधिकारी माना गया था। माता सती की मां ने ही उनका सत्कार किया और पिता ने तिरस्कार किया। जब माता सती ने भगवान शंकर के प्रति किए व्यवहार के विषय में पिता से प्रश्न किया तब पिता दक्ष ने अपमानित भाषा का प्रयोग किया। इससे कुपित होकर माता सती ने यज्ञ के कुंड में कूदकर अपने प्राण दे दिए। वहां उपस्थित शिवगणों ने यज्ञ विध्वंस कर दिया। भगवान शंकर को जब ज्ञात हुआ तब वे विरह से व्याकुल हो गए और माता सती के शव को उठाकर समस्त ब्रह्मांड में भ्रमण करने लगे। इनकी विरहाग्नि से समस्त लोक जलने लगे। भगवान विष्णु ने स्थिति की भयावहता को भांपते हुए माता सती के अंगों को अपने सुदर्शन चक्र से 52 टुकड़ों में विभक्त कर दिया। ये अंग पृथ्वी पर जहां भी गिरे वे शक्तिपीठ बन गए। हिमाचल प्रदेश में भी माता सती के अंग गिरे और यह माता की शक्ति से भरपूर हो गया। 

महाभारत की घटना भी द्रोपदी के कारण ही घटित हुई। यदि द्रोपदी दुर्योधन को ‘अंधे का पुत्र अंधा’ नहीं कहती तो वह भयंकर नरसंहार वाला महाभारत युद्ध कभी नहीं होता। मां सीता ने भगवान श्रीराम का कहना नहीं माना था। हालांकि वह भी माता सीता की लीला ही थी जिससे उन्होंने हम सांसारिक जीवों को शिक्षा प्रदान की। माता सीता को भगवान श्रीराम ने कहा कि सोने का मृग होता ही नहीं है लेकिन वे न मानीं। अंततः उस मायावी मृग के पीछे उन्हें जाना पड़ा। इसके बाद जब मायावी आवाज आई कि लक्ष्मण मेरी सहायता करो, तब भी माता सीता न मानी और भगवान लक्ष्मण के बार-बार समझाने पर भी उन्हें भगवान श्रीराम की खोज के लिए भेज दिया। जाते-जाते भगवान लक्ष्मण ने रेखा खींच दी और कहा कि हे माता इसका उल्लंघन मत करना। माता सीता ने यह भी नहीं माना और रेखा का उल्लंघन कर दिया तथा रावण उनका हरण करके लंका में ले गया। जब-जब स्त्री मर्यादा की रेखा का उल्लंघन करती है, उसका हश्र होता है। रामायण भारत में है, इसलिए यहां अभी संस्कार शेष हैं वर्ना अमेरिका, कनाडा व पश्चिम के देशों में तो जैसे संस्कार हैं ही नहीं। भगवान श्रीराम ने आजन्म एक पत्नीव्रत धर्म का पालन किया। भगवान श्रीराम जैसा आज्ञाकारी पुत्र, भरत, लक्ष्मण जैसे भाई इतिहास में कोई नहीं है। रामायण के आदर्शों से ही भारत में धर्म व संस्कृति बची हुई है। पश्चिम के देशों में तो रिश्ते जैसे नाममात्र के लिए हैं। एक पति की कई पत्नियां तो एक पत्नी के कई पति । इनकी संतानों का भी नहीं पता होता है कि कौन सी संतान किस पति या पत्नी की है। बेटियां, दामाद, पुत्र, पुत्रवधू, माता-पिता सबका एक जगह शराब पीना, वहां आम बात है। उचित तो यह होता है कि पति-पत्नी एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करें और किसी भी मतभेद को संवाद से ही निपटा लें। घर की लड़ाई घर से बाहर न जाए, इसी को आदर्श गृहस्थ कहा जाता है। (शिमला समागम)

प्रभु कृपा पत्रिका,जनवरी, 2019

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