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निष्काम भावना का सच

गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, आज के युग में धर्म नहीं है बल्कि आजकल धर्म का सिर्फ प्रदर्शन है। जिस तरह से लोग बात करते हैं, निष्काम भावना की, निष्काम होने के प्रदर्शन की लेकिन उनके मन में कोई-न-कोई कामना रहती है। ऐसा क्यों?

परम् पूज्य गुरुदेव : यह वाक्य सभी संतों ने लिखा है कि जो निष्काम भावना से प्रभु की भक्ति करते हैं, उन्हें सब कुछ प्राप्त होता है। जैसे कि भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, सद्गुरु नानक देव जी ने श्री गुरुग्रंथ साहिब में लिखा है, ऐसा ही बाइबिल एवं कुरान में भी लिखा है कि जो निष्काम भावना से कर्म (भक्ति) करते हैं, उन पर प्रभु प्रसन्न होते हैं। जो व्यक्ति निष्काम भावना से कुछ प्राप्त करने की इच्छा रखता है, उसे जीवन में कुछ नहीं मिलता है। निष्काम भावना का अर्थ है कि मेरी कोई भी कामना नहीं है। जो प्रभु दे, निरोग करे, मुझे धन दे, मुझे अपयश दे, सुंदरता दे, मुझे रोगी बना दे, तब भी ठीक है। प्रभु मेरी इच्छा माने या न माने, मेरी बेटी स्वस्थ हो या न हो, मेरा पति मुझ पर प्रसन्न रहे अथवा न रहे, मेरा संसार में यश-कीर्ति रहे या न रहे, जो आपकी इच्छा हो वह हो- इस तरह की भावना को निष्काम भावना कहा जाता है।

यह जो निष्काम भावना है उसका अर्थ ही है कि वह कामना करके निष्काम भावना का नाम ले रहा है। निष्काम भावना का अर्थ है कि प्रभु हमारा जो जीवन है वह आपके प्रति समर्पित है। आपकी जो इच्छा हो, वही सर्वोपरि है। मैं अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक बस, आपके इच्छा का सम्मान करता रहूँ। आपको जो अच्छा लगे, वहीं मुझे भी अच्छा लगे, इसका अर्थ निष्काम भावना है। अगर कोई व्यक्ति यह सोचेगा कि मैं निष्काम भावना रखूंगा। तो मुझे हर चीज की प्राप्ति हो जायेगी। ऐसे व्यक्तियों की भगवान् भी परीक्षा लेते हैं कि सचमुच यह व्यक्ति निष्काम भावना से भक्ति कर रहा है अथवा नहीं। जैसे प्रहलाद ने निष्काम भावना से प्रभु का नाम लिया, सिमरण किया। भगवान् श्रीकृष्ण चाहते तो पांडवों को जुए में जिता सकते थे। अगर चाहते तो पांडवों को बारह साल के वन भ्रमण से उबार सकते थे। लेकिन भगवान् श्रीकृष्ण ने देखा कि दुःखों के समय में ये हमारी भक्ति करते हैं या नहीं। जब भगवान् श्रीकृष्ण ने देखा कि वह ऐसी स्थिति में भी निष्काम भावना से भक्ति कर रहे हैं तो उन्होंने पांडवों को सब कुछ दिया।

कुरान-ए-पाक को कहा जाता है कि यह लिखी गई नहीं है बल्कि उतरी हुई है। यह हजरत मोहम्मद साहिब ने नहीं लिखी है बल्कि यह हजरत मोहम्मद साहिब के द्वारा लाई गई है। इसी तरह श्री गुरु ग्रंथ साहिब है, गीता है, बाइबिल है। इस तरह जो धर्मग्रंथ हैं, मगर उस पर किसी का नाम है। यह जानकर आप हैरान होंगे कि श्री गुरुग्रंथ साहिब गुरु नानक देव जी ने नहीं लिखा। वह अनंत अनंत संतों की वाणी है लेकिन इन सभी के पीछे सद्गुरु नानक की जो वाणी थी, उसमें उनका नाम नानक जी लिख दिया गया। वे सारे गुरू चाहते तो नीचे अपना नाम भी दे सकते थे। उनकी इस महानता के कारण श्री गुरुग्रंथ साहिब गुरु की तरह सारे संसार को प्रकाशित कर रहा है। इसी तरह जब भी किसी संत का पतन होता है तो वह उसके अपने होने पन से होता है, उसका विकास रुक जाता है। जैसे कोई बैलगाड़ी चल रही है, उसके नीचे कोई कुत्ता चल रहा है और कुत्ता यह समझे कि यह बैलगाड़ी जो है वह मेरे कारण चल रही है। अगर मैं यहाँ से हट जाऊँगा तो यह बैलगाड़ी नहीं चल पायेगी। संत का जो अस्तित्व है, वह कुत्ते की तरह है, इससे ज्यादा नहीं है। सद्गुरु नानक ने संतों ने यहाँ तक लिखा है कि मैं तो राम का कुत्ता हूँ। मेरे गले में जो रस्सी बांधी है, वह परमात्मा ने बाँधी है और मेरा इतना ही प्रभाव है।

जो संत अपनी विराटता का प्रदर्शन करते हैं, शोभा यात्रा का प्रदर्शन करते हैं, अपने सूत्रों का प्रदर्शन करते हैं। नाम नारायण का लेंगे, नाम भगवान् शिव का लेंगे लेकिन चित्र अपना लगायेंगे। इससे किसी का कल्याण नहीं होता है। उससे किसी भी मानव को लाभ नहीं होता है। इससे अपयश ही होता है और किसी रोगों का निदान भी नहीं होता है। जब भी किसी का कल्याण होता है तो वह परमात्मा के द्वारा ही होता है, ऐसा ऋषि-मुनियों ने ग्रंथों में लिखा है। प्रभु के द्वारा ही इस जगत् में सब कुछ होता है। हम न तो चाँद, तारे, सूर्य एवं पृथ्वी बना सकते हैं। प्रभु के द्वारा ही इन सभी चीजों का निर्माण हुआ है। अगर हम एक लाख या दस लाख लोगों को प्रभावित भी कर लेते हैं तो इसके आगे अर्थ क्या है? सच्चाई तो यह है कि हम एक बाल का भी निर्माण नहीं कर सकते हैं।

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One Comment

  • dhanaknikhil April 4, 2023

    Jai satgurdev jai guru Maa ji koti koti parnaam charnon mein ?
    Jai Maa Durga ji koti koti parnaam charnon mein Aapke ❤️
    Jai Maa Ambe Jai maa Jagdamba ji ???

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