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सुख-दुःख के पार कैसे जाएं?

गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, व्यक्ति सुख और दुःख के पार किस प्रकार जा सकता है?

परम पूज्य गुरुदेव : यह प्रश्न अति महत्वपूर्ण और जगत के लिए कल्याणकारी है। इस जगत में हमें देखने में लगता है कि सारे तन दौड़ रहे हैं लेकिन वास्तव में यह सारा मन का जाल है। जो भी तन हमें अच्छे दिख रहे हैं, सुन्दर दिख रहे हैं, दुःखी दिख रहे हैं, अमीर दिख रहे हैं, गरीब दिख रहे हैं इसमें तन से अधिक मन का महत्व है। जैसे हम किसी व्यक्ति को कह दें कि तेरा हाथ ठीक नहीं है तो उसे इतना बुरा नहीं लगेगा या उसे कह दें कि धन नहीं है, तू गरीब है तो उसे इतना बुरा नहीं लगेगा। अगर हम किसी व्यक्ति को कह दें कि तेरा मन ठीक नहीं है तू मानसिक रूप से विक्षिप्त है या तू पागल है तो उसे ज्यादा गहरी चोट लगेगी। यह बात उसके हृदय को छूती है, उसे ज्यादा पीड़ा देती है। उसी तरह अगर हम किसी व्यक्ति की तारीफ कर दें कि तू बड़ा अच्छा है, तेरा मन बड़ा पवित्र है तो उसे बहुत अच्छा लगता है।

एक बार चाणक्य के पास ज्योतिष का अंक विद्या का एक ज्ञाता आया उसने चाणक्य को देखकर कहा, ‘जैसी आपकी वस्तुस्थिति है, ग्रहस्थिति है, उससे आपको विक्षिप्त या कमजोर होना चाहिए।’ लेकिन चाणक्य का मन दृढ़ था, वह बहुत ही शक्तिशाली था। तब अंक विद्या के उस ज्योतिष आचार्य ने कहा, ‘मेरा ज्योतिष अंक आप पर काम नहीं करेगा क्योंकि जो मन से संकल्पवान है, मन से शक्तिशाली है, जो मन से नहीं हारता, उसकी कभी हार नहीं होती।’

जिसका मन संकल्पवान होता है वह सुख-दुःख से परे चला जाता है. और उस पर प्रभु की कृपा होती है। प्रभु मन, बुद्धि और चित्त से परे है। हमारे हर क्रिया-कलाप से परे है। जो मन से पार चला जाता है जिसके साथ प्रभु का तन्मय हो जाता है, वह जो चाहे इस जगत में कर सकता है, ऐसा शास्त्रों व ग्रंथों में वर्णित है।

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