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यमुना जल का वैज्ञानिक महत्व

गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, जैसी माँ गंगा की दिव्यता है। वैसी मां यमुना की भी है। आप कृपया बताएं कि माँ यमुना के तट पर आकर कौन-कौन से रोगों से मुक्ति मिलती हैं?

परम् पूज्य गुरुदेव : आपने जनकल्याण के लिए, समाज की जो समस्या रखी है, उनको सामने रखते हुए जगत के लिए जो अनूठा, जिज्ञासा भरा प्रश्न का अनुरोध किया है, वह निश्चय ही अर्थपूर्ण है। इस पहलू को समझने के लिए हमें कई आयामों को देखना पड़ेगा। तभी इसके महत्व के सार को जाना जा सकता है। सबसे पहले हमें इसके प्रारंभिक रूप में जाना पड़ेगा। जैसे आम जगत् में जो श्रेष्ठ पुरुष हैं या ऊँचे-ऊँचे पदों पर बैठे व्यक्ति हैं वे जब अपने स्थान का चुनाव करेंगे तो वे निकृष्ट स्थान का चुनाव नहीं करेंगे। वे उस स्थान को चुनेंगे जो अति उत्तम लगेगा। व्यक्ति अपने भ्रमण के लिए, मानसिक शांति के लिए उत्तम स्थानों का ही चयन करता है।

भगवान् विष्णु ने जगत् कल्याण के लिए लीला करने के लिए वृंदावन की धरती को चुना। अगर इन्होंने इस स्थान का चयन किया, जहाँ उन्होंने बाल क्रीडा की, जहाँ से उनका अत्यंत लगाव रहा तो यह निश्चय ही परम् गहन रहस्य की बात है। यह धरती परम कल्याणकारी है, दिव्यता रखती है। जहाँ भगवान् के चरण पड़े, उस धरती की महिमा उसी तरह रहती है जैसे पूर्व में थी अर्थात् उनके समय में थी। भगवान् श्रीकृष्ण ने माँ यमुना के स्थान को चुना था, उन्होंने इस धरती का स्पर्श किया था, उन्होंने इस स्थान पर अपनी आभा दी, जल विहार किया तो उसका जो महत्व है वह हमेशा एक सा रहेगा।

यह जो यमुना की बाहरी गंदगी है वह बाहरी परिवेश से संबंध रखती है, वातावरण से संबंधित है, सरकार से संबंधित है। इस पवित्र स्थान में जहाँ भगवान् विष्णु इतने वर्षों तक रहे हैं, वैसे स्थान की महत्ता किसी दूसरे स्थान की अपेक्षा अधिक है। भगवान् श्रीकृष्ण ने यमुना में स्नान किया है। इसलिए इस स्थान की जो दिव्यता है वह कभी खत्म नहीं होगी। इसका जल साफ नहीं है या यहाँ के रहने वाले लोगों की स्थिति अच्छी नहीं है, यह बाहरी वातावरण है, वह भगवान् की दिव्यता से संबंधित नहीं है। यह जो यमुना का बाहरी प्रारूप है, वह यहाँ के विभाग के कारण है। अगर यहाँ के विभाग के मंत्री चाहें, संचालक चाहें तो इसके प्रारूप को वे सुन्दर बना सकते हैं। अगर इसे स्वच्छ नहीं रखा जा रहा है तो यह हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है।

जब व्यक्ति यहाँ आता है तो अद्भुत आभा से युक्त हो जाता है। यमुना जी में स्नान करता है तो अद्भुत शांति मिलती है। अगर कोई व्यक्ति इसकी आभा को आँखों से देखना चाहेगा तो नहीं देख पायेगा क्योंकि यह दिव्यता का विषय है। यमुना के तट पर माँ यमुना के सिमरण के बाद भगवान् श्रीकृष्ण तथा राधा का जो सिमरण करता है ऐसे व्यक्ति को हजारों-करोड़ों वर्षों की तपस्या का फल मिलता है, क्योंकि यहाँ पर भगवान् श्रीकृष्ण की दिव्यता प्रस्फुटित होती रहती है। इस बात को आप इस तरह समझें कि हमारी माँ जब बूढ़ी हो जाती हैं। तो वह तब भी हमारे लिए माँ ही रहती है। ठीक इसी प्रकार यमुना जी के गंदा होने से माँ यमुना का महत्व कम नहीं हो जाता है। माँ यमुना के दर्शन मात्र से ही जन्मों-जन्मों का फल प्राप्त होता है।

अगर कोई व्यक्ति मानसिक अवसाद से ग्रस्त है, उसके मस्तिष्क में अवरोध है, वह तनाव से ग्रस्त है तो वैसा व्यक्ति अगर यमुना के किनारे आकर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का सिमरण करता है, तो केवल एक दिन के सिमरण करने से उसके मानसिक अवसाद, तनाव देखते-ही-देखते क्षण भर में खत्म हो जायेंगे।

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