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वास्तु ज्ञान का अति दुर्लभ सत्य

गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि अपने घरों, व्यावसायिक स्थानों आदि को वास्तु के हिसाब से बनाना चाहिए इससे कार्य सिद्ध होते हैं परंतु बहुत से लोगों का तर्क है कि उनके घर वास्तु के हिसाब से नहीं बने हैं, फिर भी उनके कार्य सिद्ध हो रहे हैं। इसके पीछे क्या रहस्य है?

परम् पूज्य गुरुदेव : आपने जन-कल्याण के लिए आधुनिक वर्ग के लोगों की, युवा वर्ग की, बुद्धिजीवी वर्ग की जो समस्या रखी है वह बहुत उत्तम है यह सत्य है कि व्यक्ति इन सब चीजों को नहीं मानते हैं। इसके पीछे कुछ कारण है। जैसे हमारी भाषा है, हमारा व्यवहार है, वह हमें संस्कारों से मिला है। इस तरह हमारा वातावरण बना है। आजकल सभी समझते हैं कि मैं मुसलमान हूँ, मैं हिन्दू हूँ, मैं सिक्ख हूँ, मैं ईसाई हूँ। यह कोई नहीं मानते हैं कि मैं मानव हूँ। उनके मन में यह भावना रहती है कि मैं अपने-अपने धर्म के लिए कुछ करूंगा। इतने उत्तम शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी उनके अंदर यह भावना नहीं आती है कि मैं मानवता के लिए कुछ करू। आजकल ऐसे कम व्यक्ति हैं जो मानवता के लिए कुछ करते हैं।

धर्म का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अर्थ होता है धारण करना। जब कोई व्यक्ति विशेष ज्ञान को ग्रहण करता है, जब व्यक्ति ज्ञान को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जानता है, ज्ञान के रहस्यमय तत्व को जानता है तो उसे जानने को ही धर्म कहा जाता है, धारण करना कहा जाता है। इतने शैक्षिक वातावरण में भी किसी शिक्षण संस्थानों में इसके बारे में कुछ नहीं बताया जाता है। इसको बताने के लिए उस विषय में शिक्षक का निपुण होना अत्यन्त आवश्यक है।

जिस वातावरण में मनुष्य रहता है, वहाँ जो उनके गुरुजन है, धर्माधिकारी हैं, उस पर आधारित होता है। जो व्यक्ति सनातन प्रवृत्ति के हैं, उनके माता-पिता उन्हें शुरू से ही इस सभी का बोध करायेंगे। अगर व्यक्ति सनातन धर्म में आने के बाद किसी और गुरु से संबंधित हो जाये। अगर ऐसे गुरू के पास शिष्य-चला जाता है तो वह गुरू कहता है कि वह ही केवल परमात्मा है, केवल उसी को माने तथा किसी देवी-देवता को नहीं माने। अगर व्यक्ति किसी वास्तु की पूजा करेगा या देवी-देवता की पूजा करेगा तो उस गुरू का महत्व कम हो जायेगा। अतः ऐसे गुरु ऐसा ज्ञान अपने शिष्य को नहीं बताते हैं। हिन्दू धर्म वाले मुस्लिम धर्म की अच्छाइयों को जानना नही चाहते हैं। ठीक उसी तरह मुस्लिम धर्म वाले हिन्दू धर्म की अच्छाइयों को जानना नहीं चाहते हैं।

व्यक्ति का जो दृष्टिकोण है, व्यक्ति किस ग्रह में पैदा होता है, बाकी उसकी जन्मकुंडली क्या है, इस पर उसका आधा जीवन आधारित होता है और आधा जीवन आधारित होता है कि वह किस घर में रहता है। अगर किसी व्यक्ति के ग्रह की स्थिति इतनी सशक्त है, इतनी पूर्ण है कि उस पर गुरू (बृहस्पति) की कृपा है तो उस पर कोई भी बाधा नहीं आयेगी, कोई भी संकट नहीं आयेगा। यह उसके पूर्व जन्मों का प्रताप हैआज हम जिन्हें ऊँचे-ऊँचे पदों पर देखते हैं, वह उनके पूर्वजन्मों का फल है, तप का प्रभाव है। आज जो दावा कर रहे हैं कि वास्तु के हिसाब से मेरा घर नहीं है परंतु सभी कार्य सिद्ध हो रहे हैं, वह अहंकार वश ऐसा कहते हैं। सत्यता यह है कि उनके घर में कष्ट है, रोग हैं क्योंकि जो व्यक्ति शांत प्रवृत्ति का है, शांत है, वह कभी भी दावा नहीं करेगा। वह वैज्ञानिक प्रक्रिया से गुजर कर जीवन यापन करेगा। अगर कोई व्यक्ति वास्तु देवता की पूजा-अर्चना कर व्यवहार करेगा तो उसके सारे कार्य सफल होंगे। जो व्यक्ति वास्तु के अनुसार दुकान, फैक्ट्री, बिजनेस को चलायेगा, उसके व्यापार में काफी धन की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति तत्ववेत्ता संत के पास जाकर वास्तु के मर्म को समझकर अपना कार्य प्रारंभ करता है तो ऐसे व्यक्ति के सारे कार्य सिद्ध होते हैं, फलदायी होते हैं। ऐसे व्यक्ति शतायु होकर जीते हैं एवं धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की दृष्टिकोण से जीवन जीते है। उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि जब किसी व्यक्ति के घर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा में हो या पूरब दिशा में हो तो उसके सारे कार्य सिद्ध होते हैं और अगर यह स्थिति न हो तो कोई न कोई विघ्न आ जाते हैं, इसके पीछे क्या रहस्य हैं?

परम पूज्य गुरुदेव : यह संपूर्ण विश्व के कल्याण का प्रश्न है। हमारा जीवन ग्रह स्थिति पर आधारित है। हमारा जन्म किस ग्रह स्थिति में हुआ, यह जीवन का आधा हिस्सा है। इससे ज्योतिष आचार्य या आयुर्वेदाचार्य उसकी ग्रह दशा देखकर जीवन का आकलन करते हैं। अगर व्यक्ति के ग्रह-दोष ठीक न हों और उसमें वास्तु दोष भी अधिक हों तो व्यक्ति का जीवन अनंत दुःखों से घिर जाता है। अगर किसी व्यक्ति का टायलेट, बाथरूम पूरब दिशा की ओर होगा तो उसके घर में काफी संकट होगा, काफी रोग आएंगे या किसी के घर का मुख्य द्वार दक्षिण की ओर होगा तो उसके घर में काफी रोग आएंगे। उसके घर में ऐसे-ऐसे रोग आएंगे जो मृत्यु जैसे दुःखदायी होंगे।

इसी तरह से एक अनंत विज्ञान है जिसमें कई चीजें देखी जाती हैं जैसे ‘उसकी मिट्टी कैसी है, घर की आभा कैसी है, उसमें पिता का स्थान कहां है, पुत्र या पुत्री कहां रहते हैं, संबंधियों का बिस्तर कहां है, बेड का सिर कौन सी दिशा में है, जल का स्थान कहां है आदि। जिन व्यक्तियों के घरों में ये दोष दूर हो जाते हैं उन्हें किसी तरह की कोई कमी नहीं रहती। जो तत्त्ववेत्ता संत हैं, ऋषि-मुनि हैं वह अपने आत्मीय तल से वहां रहने वाली आत्माओं से साक्षात्कार करते हैं और उससे वार्तालाप कर वहां से हटा सकता है और दिव्य आत्मा को निमंत्रित कर सकता है। ऐसे जो वास्तु शास्त्र के विशेषज्ञ हैं उनमें जब इस प्रकार की आभा आती है तो उसके अन्दर दिव्य आत्मा का आगमन होता है।

प्रभु कृपा से इस रहस्य को जानने के लिए काफी लंबे समय की आवश्यकता होती है। फिर भी मैं ऐसे योग बताऊंगा जिसे करने से व्यक्ति अपने नये घर का निर्माण वास्तु की तरह से करवाएगा और अपने घर में तत्त्ववेत्ता संत के चरण डलवायेगा तो संपूर्ण कष्टों का निवारण होगा। सबसे पहले भगवान गणपति की पूजा करें। भगवान गणपति की मूर्ति भी दरवाजे से बाहर या अन्दर स्थापित कर सकते हैं। भगवान गणपति की मूर्ति पांच फुट से बड़ी नहीं होनी चाहिए। पत्थर, तांबे, चांदी या किसी धातु की हो पर उसे एक बार स्थापित करके हटानी नहीं चाहिए। गणपति यंत्र को सिद्ध करके मूर्ति के आगे रख दें तो प्रभु कृपा से भगवान गणपति की आभा सदैव उसके घर की रक्षा करेगी। भगवान गणपति का मंत्र एक लाख आठ बार जप करने पर सिद्ध हो जाता है। उसके साथ दुर्गा सप्तशती का मंत्र संपुटित करके इस मंत्र के साथ ‘ॐ गं गणपतयै नमः’ को मंत्र-ॐ सर्व मंगल मांगल्ये ……

से संपुटित करके पाठ करवाये, इससे यंत्र सिद्ध हो जाएगा। यंत्र को भगवान गणपति के आगे रखकर सुबह, शाम धूप दिखाएं और मंगलवार और बृहस्पतिवार के दिन खोए के लड्डू का विशेष रूप से भोग लगाएं। इससे भगवान गणपति की कृपा प्राप्त होती है। उसके बाद मंत्र-

ॐ गं रां ह्रीं हं ह्रीं ऐं श्रीं नमः ।

ॐ नमो वास्तुदेवता भव नमो नमः ।

इस मंत्र का एक लाख आठ बार जप करके वास्तु यंत्र के साथ सिद्ध हो जाएगा। इसके साथ मंत्र – ॐ रोगान शेषान…. इस मंत्र को दुर्गा सप्तशती के साथ संपुटित करके शतचण्डी का पाठ करें। वहां भी इस यंत्र को रख दें। इस यंत्र को जो भी व्यक्ति अपने घर में रखेगा उसके घर में किसी भी प्रकार का वास्तुदोष सदा के लिए समाप्त हो जाएगा और धन-धान्य की किसी प्रकार की कमी नहीं होगी। ध्यान रखें कि आपके घर के आगे मंदिर की छाया न पड़े, न कोई पीपल का पेड़ हो, न कोई बड़ का पेड़ हो या ऐसा कोई पेड़ जिससे दूध निकलता हो या जिस पेड़ में कांटे हों इस तरह के पेड़ घर के अंदर या बाहर नहीं होना चाहिए। अगर घर के आगे नीम का पेड़ या अशोक का पेड़ हो तो अति कल्याणकारी है।

अगर किसी के घर के आगे दूध वाला या पीपल का वृक्ष है तो उसके लिए एक औषधि है। उसके रखने से वहां का देवता प्रसन्न रहता है जिससे उसका दोष उस घर पर नहीं आता। उसका उपाय इस प्रकार है-कीकर की फली, मैनमिष का पत्ता, गुलदावरी का पत्ता, नीबू, काला नमक, साधारण नमक, काली मिर्च, लाल मिर्च सभी को 10 ग्राम लेकर पोटली में बांधकर उसे उस पेड़ में बांध दें। उस में एक लोटा जल में चीनी और दो चम्मच गाय का कच्चा दूध तथा थोड़ा गुड़ मिलाकर पेड़ की जड़ में डालकर पेड़ को प्रणाम करें। प्रभु कृपा से इस योग से पेड़ का दोष सदा के लिए हट जाएगा।

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2 Comments

  • vinod sadanand vishwakarma February 23, 2024

    please says which books should be used for making house

  • vinod sadanand vishwakarma February 23, 2024

    which books should be refer

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