गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, मदिरा की लत एक गंभीर रोग की तरह है, बहुत से लोग इसका शिकार होते हैं। इससे मुक्ति चाहते हैं आप कृपा करें कि इससे कैसे मुक्ति मिले ?
परम पूज्य गुरुदेव : मदिरा से आदमी को थोड़ी देर के लिए मानसिक तनाव से विश्राम मिलता है इसके अलावा इसे पीने से रोग ही पैदा होते हैं। मदिरा आंखों पर भी प्रभाव डालती है, शुगर बढ़ता है, वजन बढ़ता है, कोलेस्ट्राल को बढ़ाती है, हृदय रोग को बढ़ाती है, पैप्टिक अल्सर भी इससे होता है। जगत में ऐसा कोई रोग नहीं है जो मदिरा से न होता हो।
मंदिरा छोड़ने के लिए आदमी में इच्छा शक्ति की परम आवश्यकता है। अगर कोई व्यक्ति कहेगा कि मुझे मदिरा छोड़नी ही नहीं चाहे मेरा गुर्दा खराब हो जाए, लीवर खराब हो जाए, हार्ट अटैक पड़ जाए या मैं समाप्त ही क्यों न हो जाऊं तो ऐसे व्यक्ति के लिए कोई औषधि नहीं है। जो व्यक्ति अपने बच्चों का, तन, मन, धन का ध्यान रखना चाहता है, स्वस्थ रूप से जीना चाहता है, अगर वह संकल्प करे तो 2-3 माह में वह मदिरा का सेवन पूरी तरह छोड़ सकता है। इसकी औषधि इस प्रकार है- सदाबहार के फूल का रस, करेले का रस, सौंफ का रस, मैनमिष के पत्तों का रस, बेरीगेटाकेना के पत्तों का रस, टमाटर के बीज का रस, संतरे के छिलके का रस, मौसमी के छिलके का रस, खेजड़ी के पत्ते और खेजड़ी की जड़ का रस। इन सभी को मिलाकर एक बोतल में रख लें। शराब पीने वाला व्यक्ति जब भी शराब पीना चाहे उसे आधा चम्मच रस पिला दें। इससे उसे शराब का स्वाद भी आयेगा और नशा भी आएगा। इस तरह 2-3 माह के सेवन से धीरे-धीरे वह शराब से नफरत करने लगेगा क्योंकि उसकी चेतना जाग जायेगी और उसे पता चल जायेगा कि शराब मेरे लिए कितनी हानिकारक हैं। अगर कोई चिकित्सक या कोई व्यक्ति इसका प्रयोग करना चाहें तो मुफ्त में करें क्योंकि जिस तरह कोई मां अपना दूध नहीं बेचती, पुजारी भगवान नहीं बेचता, मां अपना प्रेम नहीं बेचती, अपने बच्चे को नहीं बेचती उसी तरह ये जड़ी बूटियां हैं। इनको व्यापार के रूप में इस्तेमाल न करें अन्यथा उस व्यापारी व्यक्ति को हानि हो सकती है। अतः इसका प्रयोग जन कल्याण के लिए ही करें।
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