गुरु से कभी मांगने की जरूरत नहीं होती। ऐसे ही मंदिरों में जाकर रोने से कभी कुछ प्राप्त नहीं होता और न ही याचना करने से लाभ होता है। आपको तो बस यह करना चाहिए कि गुरु के समक्ष या मंदिर में जाकर बैठ जाएं और चुप करके अपने श्रद्धासुमन भेंट करें। गुरु बिना कहे भी सब कुछ दे देता है। आप वार्तालाप करके अपनी हानि करते हैं। मैं अपने गुरु के द्वार पर एक महीना तक बैठा रहा था। कोई वार्तालाप हमारे बीच नहीं होता था। एक महीने बाद गुरु जी ने मुझे एक पाठ दिया। केवल निस्वार्थ सेवा भाव से ही कृपा मिलती है। कोई भी सेवा करें तो यह भाव मन में भी न लाएं कि मैंने यह सेवा की है। किसी को बताओ भी मत, नहीं तो सब व्यर्थ हो जाएगा। जब बिना जाहिर किए सेवा की जाती है तो आपको इतना मिलेगा कि उठाया भी नहीं जा सकेगा। सेवा हमेशा विनम्र भाव से करनी चाहिए। (फरीदाबाद समागम)
किसी शरीर में नहीं आते देवी-देवता शोर मचाना, नारे लगाना, ढोल-नगाड़े बजाना-मां की भक्ति नहीं कहलाती। दुर्गा मां की भक्ति केवल शांति से पाठ करने और उसमें ध्यान लगाने से ही होती है। कई बार कुछ लोग सिर हिलाते हैं और उल्टी-सीधी हरकतें करते हैं। उनका कहना होता है कि उनमें दुर्गा मां आ गई हैं। कई कहते हैं कि भूत-प्रेत आ गए हैं। पहली बात तो यह है कि दुर्गा मां किसी के शरीर में क्यों आएंगी और आएंगी भी तो वह सिर क्यों हिलाएंगी। दुर्गा मां कभी सिर हिलाती हैं, उछल-कूद करती हैं? यह ढोंग है, आडंबर व प्रपंच है। यह वो लोग हैं जो विक्षिप्त होते हैं और अपनी ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए ऐसा करते हैं। जब कोई ऐसा करे तो उसकी ओर ध्यान मत दो। उसे कहीं दूर ले जाकर छोड़ दो, वह अपने-आप ही शांत हो जाएगा। भला दुर्गा मां भगवान शिव, बजरंगबली किसी के शरीर में क्यों आएंगे? जबकि इनका पाठ करने से भूत-प्रेत दूर भाग जाते हैं। भगवान बजरंगबली ने बाल्यावस्था में सूर्य को एक फल समझकर मुख में रख लिया था। माता सीता की खोज में जब गए तो समुद्र को एक ही छलांग में पारकर दिया था। भगवान लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर उनके लिए संजीवन बूटी वाला पहाड़ ही उठा लाए थे। अहिरावण जब भगवान श्रीराम व भगवान लक्ष्मण का अपहरण करके ले गया तब उसका वध करके इन्हें मौत के मुख से निकालकर लाए थे। भला ऐसे भगवान हनुमान किसके शरीर में समा सकते हैं जो आज भी अजर-अमर और कलियुग के देवता हैं। इन्होंने महाभारत युद्ध में भी भगवान श्रीकृष्ण व अर्जुन की सहायता की थी। इसके पश्चात् भी उनमें कर्ताभाव नहीं आया। वे इन सब कार्यों से अंजान थे। उनका कहना था कि यह सब मैंने नहीं किया, यह तो स्वयं भगवान श्रीराम की लीला है। (पालमपुर समागम)
-प्रभु कृपा पत्रिका,जनवरी, 2019
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