गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, ध्यान के अनेकों रूप माने जाते हैं जिसका उल्लेख हमारे शास्त्रों एवं ग्रन्थों में किया गया है। कृपया आप बताएं कि स्त्रियों के लिये कौन ही ध्यान क्रिया उचित होती है जिससे वे शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक दृष्टि से स्वस्थ हो जाएं?
परम पूज्य गुरुदेव : आपने बहुत अच्छा एवं उपयुक्त प्रश्न किया है। पूरे विश्व में ध्यान की अनेकों विधियां प्रचलित हैं। वास्तविकता यह है कि स्त्री के लिए कभी ध्यान मार्ग सहज नहीं होता। पुरुषों के लिए भक्ति व समर्पण अति दुष्कर है, कठिन है। स्त्रियों के लिए समर्पण ही परम लाभकारी व आशातीत कल्याणकारी है। भक्ति व समर्पण हृदय प्रधान है। स्त्रियां प्रकृति की तरफ से ही कोमल हृदय की होती हैं। समर्पण उनमें सहज होता है। भक्ति रस तो मीरा के समर्पण से फूट निकला, तो स्त्रियां मात्र समर्पण से ही ध्यान का लाभ प्राप्त कर सकती हैं। लेकिन प्राणायाम जैसी श्वासों को नियंत्रण करने की विधियों को वे अधिक देर तक नहीं कर पाएंगी।
आप यह जानकर आश्चर्यचकित होंगे कि ध्यान की जितनी भी विधियां भगवान शिव ने शिवसूत्र व तन्त्रसूत्र में उल्लेखित की हैं उनमें प्रेम व समर्पण ही सर्वश्रेष्ठ है। क्योंकि श्वास नियमन से स्त्रियों में संवेदना आ जाएगी व क्षणिक आराम मिलेगा। लेकिन जैसे ही वे संसार में लौटेंगी, कार्यक्षेत्र, गृहस्थी में, मार्केट में जाएंगी तो उनकी बाहरी शारीरिक शक्तियां पुनः जागृत हो जाएंगी।
अधिक ध्यान करने से उनका मन करेगा कि वे कमरे के अंदर बैठी रहें, दिव्य आनन्द, आत्मिक अनुभूति में डूबी रहें लेकिन शारीरिक संवेदनशीलता के कारण उनकी शारीरिक क्षमता कम हो जाती है। बाह्य शक्तियां सूक्ष्मरूप में उनमें प्रविष्ट हो जाती हैं। ध्यान छोड़ने के बाद वे नाना प्रकार की शारीरिक व्याधियों से घिर जाएंगी। सांसारिक माहौल में लौटने से उनकी संवेदनशीलता ज्यादा उग्र रूप धारण कर लेगी। उनकी मानसिक उद्विग्नता भी बढ़ेगी।
ध्यान से पहले स्त्री को मंत्र- कवच से सुरक्षित हो जाना चाहिए क्योंकि कवच की शक्ति सर्वाधिक होती है। दूसरे हर स्त्री को पित्त, कफ की प्रवृत्ति व प्रकृति के अनुसार ही ध्यान प्रक्रिया का चुनाव करना चाहिए। जैसे प्राणायाम या विपश्यना जैसी पद्धतियों को अपनाने में कुछ न कुछ असुविधा वे अवश्य महसूस करेंगी। लेकिन किसी गुप्त कवच का प्रयोग करने से मानसिक तनाव नहीं होगा।
समर्पण ही अति उत्तम है एवं भक्ति मार्ग ध्यान से ज्यादा श्रेयस्कर है। सबसे उत्तम स्थिति पति को परमेश्वर मानकर उसके प्रति समर्पित होना है। विदेशों की संस्कृति में समर्पण का अभाव है। वे समानाधिकारी की भावना से ग्रस्त हैं। तभी उन्हें नाना प्रकार के रोग लगते हैं। जो भारतीय स्त्रियां अपनी समृद्ध संस्कृति को विस्मृत कर पाश्चात्य भौतिकतावादी संस्कृति की राह पर चल निकली हैं, जो स्त्री अधिकार व बदले की भावना से ग्रस्त हैं, उन्हें भी ऐसी ही बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। समर्पण भाव से युक्त स्त्रियां चिर युवा रहती हैं। चेहरे की चमक बरकरार रखते हुए वे झुर्रियों वगैरह से दूर रहती हैं। जीवन भर व्याधियों से मुक्त रहती हैं। मानसिक अवसाद से भी वे मुक्त रहती हैं।
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