गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, बांसुरी की तान से कौन-कौन से रोगों का इलाज हो सकता है?
परम पूज्य गुरुदेव : यह मानव कल्याण का प्रश्न है। पृथ्वी की उत्पत्ति अनहद नाद से हुई थी। अनहद नाद को ॐकार भी कहा गया है। ऋषि-मुनियों के अंतर में जिस परमात्मा की ध्वनि का अनुभव हुआ है वह नाद ही है। बांसुरी की ध्वनि में जो सातों स्वर हैं वे उसी तरह हैं। भगवान विष्णु जिनका आदि, मध्य और अन्त नहीं है, जब उन्होंने स्वयं श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो उन्होंने केवल बांसुरी के द्वारा ही मानव की सोई चेतना को जगाया। आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे पहले गाय को, स्त्रियों को यह संगीत सुनाया। क्योंकि जिस धरती पर गाय और स्त्रियां प्रसन्न रहती हैं वहां पर किसी प्रकार के दुःख का प्रारंभ ही नहीं होता। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव की उत्पत्ति गाय से मानी है। जब मानव का पतन होता है तब वह बंदर की योनि में जाता है और नीचे गिरता जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने केवल गाय को प्रसन्न किया, स्त्रियों को प्रसन्न किया। स्त्रियों को कभी धन या किसी अन्य तरह से प्रसन्न नहीं किया जा सकता, वे प्रेम के वशीभूत होती हैं और गाय भी प्रेम के वशीभूत होती है। भगवान श्रीकृष्ण तो कोई भी वाद्य या ऐसा संगीत चुन सकते थे जिससे मानव चेतना को जगाया जा सके, लेकिन उन्होंने सिर्फ बांसुरी को चुना। जिसका परिणाम हम देख रहे हैं कि भारत में भक्ति है, प्रेम है, जबकि विदेशी संस्कृति में कोई भाई को भाई नहीं समझता, माता-पिता को कुछ नहीं समझते। बच्चे माता-पिता से भी साल में एक दिन मिलने जाएंगे, ऐसा कोई दिन बना देंगे जो ‘मदर डे’ या ‘फादर डे’ होगा। भारत की धरती पर जो प्रेम है, मर्यादा है वह अद्भुत है।
भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी की तान से अनेक रोगों का नाश किया। जब भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था, उस समय किसी को अर्थराइटिस, रूमोटिज्म, हाईपरटेंशन, थाइराईड, कैंसर, ट्यूमर जैसे कोई रोग नहीं थे। अगर कोई व्यक्ति भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करके उसी की लय में उनकी भक्ति के संगीत में खोकर बांसुरी बजाएगा या सुनेगा तो उसके नाना प्रकार के रोगों का अंत होगा और उसके आने वाले रोग भी समाप्त हो जाएंगे, ऐसा ऋषि-मुनियों द्वारा जाना गया है।
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