गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, बाबा नंद एवं माँ यशोदा के यहाँ नौ लाख गायें हुआ करती थीं, उनके घर में मक्खन की प्रचुरता थी। फिर भी भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के घर जाकर मक्खन क्यों चुराया करते थे ?
परम् पूज्य गुरुदेव : यह अत्यंत मनोरम, भाव प्रधान एवं भक्तिपूर्ण, प्रशंसनीय प्रश्न है। भगवान की लीलाओं को जानने के लिए अनंत अनंत शास्त्रों का अध्ययन करना पड़ता है।
आम मानव जब इस संसार में आता है तो वह कर्मों के दंड को भुगतने के लिए संसार में जन्म लेता है। लेकिन भगवान का अवतार जब इस धरती पर होता है तो वह अपने भक्तों का उद्धार करने, कल्याण करने के लिए होता है। अधर्म का नाश करके धर्म को स्थापित करना – यह भगवान् का मूल उद्देश्य होता है। भगवान् श्रीकृष्ण के समय में अर्थात् जहाँ-जहाँ भगवान् श्रीकृष्ण ने विचरण किया, वहाँ जो भी ग्वाल-बाल थे, गोपियाँ थीं, वे सभी पिछले जन्म में असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी थे। उन्होंने अनेक जन्मों तक प्रभु से कामना की थी, ‘हे प्रभु हमें अपने चरणों में स्थान दो।’
ये सारे पूर्व जन्मों में ऋषि-मुनि थे। जब इन ऋषि-मुनियों का भगवान के साथ जन्म हुआ तो भगवान् ने उनके हृदय के वास्तविक अर्थों को जानने के लिए ऐसा मायाजाल रचा। वे यह जानना चाहते थे कि किन्हें प्रभु के प्रति समर्पण है तथा किनके हृदय में कोई लोभ है या नहीं है। जो भक्त आत्मा होगी, वह जितना देगी, उसके हृदय में और अधिक विशालता आयेगी। सद्गुरु भगवान् नारायण यह देखना चाहते थे कि ये सभी पूर्व जन्मों की तरह कार्य कर रहे हैं अथवा नहीं।
भगवान श्री कृष्ण के समय मक्खन का व्यापार किया जाता था। वैसे इन गोपिकाओं को मालूम था कि भगवान श्रीकृष्ण अवतारी पुरुष हैं। साधारण मनुष्यों को अपने पिछले जन्म का स्मरण नहीं रहता है परंतु ऋषि-मुनियों को पिछले जन्मों का स्मरण रहता है। अतः भगवान् श्रीकृष्ण इन गोपियों अर्थात् पूर्व जन्म के ऋषियों द्वारा दिये गये वचन की परीक्षा लेने के लिए उनकी जो प्रिय वस्तु मक्खन है, उसको चुरा लिया करते थे। उन्हें मालूम था कि यह भगवान् की लीला है उन्हें इस मक्खन चोरी की क्रीड़ा में आनंद आता था। भगवान देखते थे कि कौन मुझे तन-मन-धन से प्रेम करता है। यह उनकी लीला थी क्योंकि भगवान की एक-एक क्रीड़ा अर्थ रखती है। वे अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें कुछ देने के लिए लीला करते थे क्योंकि जो सद्गुरु के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पित करता है, उसे समस्त चीजों की प्राप्ति होती है। वे ग्वालों एवं गोपियों के दुःखों को दूर करने के लिए ऐसा करते थे।
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