गुरुदास : परम् पूज्य गुरुदेव, जैसे कि माना जाता है कि उत्तरांचल (पर्वतीय प्रदेशों) में एक ऊर्जा प्रवाहित होती है। इस ऊर्जा से किन-किन रोगों का निदान और उपचार होता है। आप कृपा करें।
परम् पूज्य गुरुदेव : जो व्यक्ति इण्डस्ट्री के वातावरण में या प्रदूषण के वातावरण में रहता है, उन्हें छाती के रोग, गले के रोग, आँखों के रोग, कानों के रोग, त्वचा संबंधी रोग, श्वास संबंधी रोग हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति को नाना-नाना प्रकार के रोग घेर लेते हैं और इन सब रोगों का कोई उपचार भी नहीं है। आज इतनी एलर्जी जो हो रही है उसका मुख्य कारण प्रदूषण है। मुंबई, दिल्ली अथवा बड़े-बड़े शहरों में जायेंगे तो छोटे-छोटे बच्चे जो एक माह के हैं, दो माह के हैं, तीन माह के हैं, उन्हें निमोनिया, एलर्जी हो रही है, ट्यूमर हो रहे हैं, कैंसर हो रहे हैं। यह सब केवल प्रदूषण के कारण हो रहा है। लेकिन उत्तरांचल की धरती पर प्रदूषण का नामोनिशान तक नहीं है। इतना सुंदर, शुद्ध और स्वच्छ है कि जो व्यक्ति रोग से ग्रस्त हैं वे यहाँ आकर रहेंगे तो बिना चिकित्सा के ही ठीक हो जाएंगे क्योंकि इन पौधों, औषधियों में जो देवीय गुण हैं। इनकी आभा है, इनकी जो हवा है, इन्हें छूकर जब यह हमारे श्वास में जाती है तो नाना प्रकार के रोगों का अंत कर देती है। अगर कोई व्यक्ति इण्डस्ट्री के एरिया में रहता है, वह मात्र एक महीना उत्तरांचल की धरती पर रहे तो उसका ई एस आर का लेवल ठीक हो जायेगा। टी एल सी डी एल सी ठीक हो जायेगा तथा उनका हिमोग्लोबिन का लेबल भी बढ़ जायेगा। अगर व्यक्ति को श्वास के रोग हैं। अथवा जो व्यक्ति स्टीराईड मेडिसिन तक ले रहे हैं, उन्हें लेने की आवश्यकता नहीं होती। हर मानव को चाहिए कि उत्तरांचल की धरती पर आये। यहाँ आकर देवी-देवताओं के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों का भ्रमण करें, रसास्वादन करे और दैवीय कृपा का आशीर्वाद भी प्राप्त करें। इस सुन्दर, स्वच्छ एवं शुद्ध वातावरण में अपने तन और मन को स्वस्थता प्रदान करें।
गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, उत्तरांचल की धरती पर जो दिव्य वातावरण है, यह जो दिव्य स्थान है, उसका रोगों के निदान तथा उपचार में बहुत बड़ा महत्व है। हम सप्त ऋषि सरोवर के घाट पर बैठे हैं। इस सप्त ऋषि सरोवर के दिव्य वातावरण में किस प्रकार के रोगों का उपचार होता है? आप कृपा करें।
परम् पूज्य गुरुदेव : इस दिव्य भूमि का महत्व है कि यहाँ भगवान् नारद मुनि, सभी सप्तऋषि और अन्य कई देवी-देवता यहाँ आकर साधना कर चुके हैं। आज भी बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, तपी तपस्वी यहाँ आकर साधना करते हैं। और कई-कई ऋषि-मुनि ऐसे हैं जिन्होंने कई जन्मों से यहाँ तपस्या की है, साधना की है। इस धरती का यह प्रभाव है कि इस धरती के आभामंडल में जो भी आत्मा आ जाती है, उसके धर्म, अर्थ, काम संबंधी सभी दोषों का, सभी रोगों का निवारण होता है। जो भी इन महात्माओं के सानिध्य में आ जाता है, इनके आशीर्वादों से ही रोग से ही उन रोगों से मुक्त हो जाता है, जिन रोगों का आधुनिक चिकित्सा जगत् में कोई उपचार नहीं है। यहां ऋषि-मुनियों का इतना आशीर्वाद और प्रभाव है कि जो आम मानव हैं, पापी प्राणी हैं, जिस मानव ने निकृष्ट काम किए हैं, वह भी अगर इस धरती पर आ जाता है तो उसे भी प्रभु की कृपा से पुण्य की प्राप्ति होती है। यहां जितनी भी प्रकार की जड़ी-बूटियाँ हैं, उसका तो अपना महत्व है ही परंतु साथ ही उन ऋषि-मुनियों का अधिक महत्व है जिसकी कृपा से उन जड़ी-बूटियों में दिव्यता आती है, आभा आती है।
अगर आयुर्वेद की जड़ी-बूटियों में ऋषि-मुनियों का आशीर्वाद न हो, प्रभाव न हो तो ये जड़ी-बूटियाँ मौन हैं, कुछ कार्य नहीं कर सकती हैं।
गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, उत्तरांचल की भूमि पर कौन-कौन सी दिव्य औषधियाँ है?
परम् पूज्य गुरुदेव : वैसे तो विश्व में जितनी भी प्रकार की औषधियाँ है, उसका पचास प्रतिशत् भाग उत्तरांचल की धरती पर अवतरण हुआ है क्योंकि विश्व में जितने भी ऋषि-मुनि, जितने भी दिव्य संत हैं उनमें पचास प्रतिशत् संतों का उत्तरांचल की धरती पर आगमन हुआ है। उनके चरण पड़े हैं। इस धरती की जो आभा है, वह अपने-आप में दिव्य है, अनूठी है। वैसे सफाई के दृष्टिकोण से अनेक स्थान है लेकिन दिव्यता की दृष्टि से इस धरती की जो महिमा है, वह सभी ऋषि-मुनियों ने गाई है, ग्रंथों में वर्णित है। इसलिए पृथ्वी के जितने भी आध्यात्मिक लोग हैं वे इस धरती पर भ्रमण करने, पूजा करने, तीर्थयात्रा के दृष्टिकोण से आते रहते हैं। इस धरती पर इतनी दिव्य औषधियां है जिसका वर्णन करना अत्यंत कठिन है। इस धरती पर जितने भी तरह के घास हैं, वृक्ष हैं, वे सारी औषधि हैं। ऐसी कोई भी जड़ी-बूटी नहीं है जिसमें दिव्य गुण न हो, जो कोई-न-कोई रोग को ठीक न करती हो। इसको जानने के लिए ऋषि-मुनियों के द्वारा जो मंत्र हैं, उसे उच्चारण करके औषधियों को तोड़ा जा सकता है। क्योंकि इसमें कई ऐसी-ऐसी जड़ी बूटियां हैं जो स्वयं बोलती हैं कि मुझे इस रोग के लिए उपयोग किया जाये। ऐसी कितनी ही जड़ी-बूटियों का चिकित्सा शास्त्र में वर्णन भी नहीं है। लेकिन ऋषि-मुनि इनके मंत्रों द्वारा या भाव जगत् के द्वारा इन्हें पहचान सकते हैं क्योंकि यह जड़ी-बूटियाँ भाव तल में रहती हैं। जब ऋषि-मुनि भावातीत अवस्था में चले जाते हैं तब जड़ी-बूटियाँ स्वयं बोलती हैं कि मुझमें गुण है, मुझे इस प्रकार से तोड़ा जाए और मेरा इस प्रकार से प्रयोग किया जाए। ये दिव्य औषधियाँ हंसती हैं, बोलती हैं। ये हमारे दुःखों का निवारण करती हैं, हमारे रोगों को खत्म करती हैं। इसमें सारी प्रकार की आभा है।
जो भी व्यक्ति सिर्फ इस उत्तरांचल की धरती पर आकर प्रणाम भी कर लेता है तब भी उसके रोगों का यह धरती अंत करने वाली है। जो भी कोई इन औषधियों को मंत्रों द्वारा तोड़ने जायेगा तो वह देखेगा कि इन जड़ी-बूटियों में किसी में सफेद ऊर्जा, किसी में हरी तथा किसी में पीली ऊर्जा निकलती है। क्योंकि ये जड़ी-बूटियां मन के पार के जगत में रहती है, ये भावातीत तल में रहती है, ये आत्मिक तल में रहती है। साधारण मानव आँखों के तल से देखते हैं। क्योंकि आँखों से थोड़े रंग ही दिखाई पड़ते हैं। लेकिन इनकी जो आभा है, किरणें है, वह कितनी अमूल्य है, वे कितनी अर्थपूर्ण है, कितने रोगों का हरण करने वाली है, यह साधारण व्यक्ति नहीं समझ सकता। इन जड़ी-बूटियों में कुछ इस प्रकार हैं जैसे अश्वगंध की जड़, विधारा की जड़, कुलंजना की जड़, मैनमिश, नागरमोथा, शतावर, कोंच के बीज, लाजवंती के बीज, सौंफ, सनाय, सुरंजा, संजीवनी आदि ।
जब इन जड़ी-बूटियों का विधिपूर्वक आह्वान द्वारा प्रयोग किया जायेगा तो ऐसी औषधियां सभी रोगों को दूर करने में सक्षम है। इन जड़ी-बूटियों को भगवान् ब्रह्मा, भगवान नारायण, भगवान शिव एवं समस्त देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त है। क्योंकि सभी जड़ी-बूटियों के सृजनकर्ता ब्रह्मा हैं। भगवान ब्रह्मा ने इन जड़ी-बूटियों का ज्ञान भगवान दक्ष प्रजापति को दिया, फिर इन्द्र, भगवान् चरक, धनवंतरी से होते हुए ऋषि-मुनियों के पास आया।
जो आयुर्वेदाचार्य सिर्फ शास्त्र की विधि से इसे तोड़कर उपयोग करता है तो उनमें लाभ पच्चीस प्रतिशत होता है परंतु मंत्रों द्वारा जड़ी-बूटी का अगर प्रयोग किया जायेगा तो रोगी को किसी एलोपैथिक चिकित्सा जगत् की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इसी तरह वैद्य में भी गुण होना चाहिए क्योंकि इस जड़ी-बूटी की आभा को आँखों से, माइक्रोस्कोप से नहीं देखा जा सकता है। इस तरह आभा से युक्त व्यक्ति अगर जड़ी-बूटी को तोड़ने जाता है तो जड़ी-बूटी बोलती है कि मेरा इस तरह से प्रयोग करें, ऐसा शास्त्रों में वर्णित है तथा ऋषि-मुनि द्वारा भी कहा गया है।
गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, पर्वतीय क्षेत्रों से कई नदियां प्रवाहित होती हैं, कई नदियां इनके आंचल से निकलती हैं जैसे गंगा, यमुना इत्यादि। इसके अलावा उत्तरांचल में कई जल स्रोत हैं जो बहुत ही अद्भुत बीमारियों का इलाज भी करते हैं। इनमें बहुत से स्रोत ठंडे भी हैं और बहुत से स्रोत गर्म भी हैं। इनसे किन-किन रोगों का उपचार होता है ?
परम् पूज्य गुरुदेव : इस जगत में जो भयंकर रोग हैं। जैसे श्वास के रोग, ट्यूमर, अर्थराइटिस, रूमाटिज्म । अगर कोई व्यक्ति उत्तरांचल की धरती पर आकर उसके जल को पिये, उसकी मिट्टी को माथे से लगाये तथा आधा घंटा विश्राम करने के बाद उन स्रोतों में स्नान कर लें तो वह बीमारियों से मुक्त हो जाएगा। यहाँ पर ऐसे-ऐसे स्रोत हैं कि व्यक्ति अगर चावल को पोटली में भिगोकर रख देगा तो वह चावल भी पक जायेगा, खाने योग्य हो जायेगा। अगर कोई व्यक्ति आद्यमान रोग से ग्रस्त है, ट्यूमर से ग्रस्त है, अर्थराइटिस से ग्रस्त है तो वह मात्र दो माह यहाँ के स्रोतों की मिट्टी लगायें और दो माह तक वैसे चावलों का सेवन करें तो वह रोगमुक्त हो जायेगा। क्योंकि यहां के जल स्रोत नाना प्रकार की औषधियों को छूकर, उसकी छाया को छूकर, लेकर, उनके दैवीय गुणों को लेकर प्रवाहित होती उनकी आभा को । उनका दैवीय प्रभाव भोजन के अंदर चला जाता है। यह जो अग्नि है वह भोजन के पौष्टिक तत्वों का नाश करती है। जब दिव्य औषधि की आभा से युक्त जल स्रोतों के द्वारा भोजन बनता है तो उसमें पौष्टिक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है तथा उनमें दैवीय गुण भी आ जाते हैं। अगर कोई असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति यहाँ की धरती पर आकर भ्रमण करेगा, यहाँ के स्रोतों में स्नान करेगा, यहाँ के तीर्थस्थलों में विचरण करेगा तो वह देखेगा कि मात्र कुछेक दिनों में ही उसका शरीर चमत्कारी रूप से परिवर्तित हो गया है और वह पूर्णरूप से स्वस्थ हो गया है। अगर कोई व्यक्ति उत्तरांचल की धरती पर आकर पंचकर्म करता है, सप्तकर्म करता है तो उसे जीवन भर कोई रोग नहीं होता है।
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