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दीपक जलाने से रोगों से मुक्ति


गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, आपने कई बार उल्लेख किया है कि दीपक जलाने से रोगों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। आखिर यह कैसे संभव है?

परम पूज्य गुरुदेव : देखिये प्रकाश का काम अंधेरे को भगाना होता है तो नकारात्मक शक्तियों को हम अंधेरे का प्रतीक मान सकते हैं। दीपक जलाने से नकारात्मक शक्तियों का ह्रास होता है।

आप जानकर हैरान होंगे कि हमारे आसपास जो भी घटित हो रहा है वह यूं ही नहीं हो रहा। हर घटना में सत्यता एवं वास्तविकता है। आजकल जो दुर्घटनाएं हो रही हैं, लोगों में विवाद हो रहे हैं, क्रोध का प्रकटीकरण हो रहा है। आपसी मन-मुटाव, बात-बात में पति-पत्नी में वाद-विवाद एवं राजनीतिक झगड़े जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न हो रहे हैं। अचानक कोई असाध्य रोग पैदा हो जाता है। या किसी का एकदम एक्सीडेंट हो जाता है। इन सबकी पृष्ठभूमि में जो उत्तरदायी है वह नकारात्मक ऊर्जाएं ही हैं और यह सब आधुनिक विज्ञान को स्वीकार्य नहीं है। यह सब आधुनिक विज्ञान की पहुंच से बाहर है। बाह्य तौर पर हमें सब कुछ अचानक घटित हुआ लगता है लेकिन जो सूक्ष्म जगत के जानकार हैं उनके लिए अचानक कुछ भी नहीं होता। उन्हें पता होता है कि ऐसी घटनाएं पूर्व निश्चित हैं। भगवान श्री बाल्मीकि ने वर्षों पहले ही रामायण की घटनाओं का अक्षरशः उल्लेख कर दिया था। सूरज चाँद की गति भी सृष्टि के कुछ नियमों के अधीन है तो क्षुद्र मानव शरीर का भी संचालन कहीं न कहीं से होता है। मानव को जब क्रोध आता है तो वह स्वयं कम अपितु उसकी ग्रहस्थिति अधिक जिम्मेवार होती है। उस स्थिति में उसके भीतर नकारात्मक शक्तियों का बलात प्रवेश हो जाता है। पर उस ग्रह स्थिति निर्माण के भी स्पष्ट कारण होते हैं। भगवान श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में स्पष्ट लिखा है-

सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलख कहेउ मुनिनाथ ।

हानि-लाभ जीवन मरण, यश-अपयश विधि हाथ ।।

तो यह सब विधाता के हाथ में, परमात्मा के नियमों के अधीन होता है। यानि ये घटनाएं पूर्व निर्धारित होती हैं लेकिन आधुनिक विज्ञान इन्हें ऐक्सीडेंट या दुर्घटना का रूप दे देता है। लेकिन सकारात्मक शक्तियों के सान्निध्य में रहने वाले मानव इन अनहोनियों से बच सकते हैं क्योंकि होनी तो निश्चित है वह टल नहीं सकती। हाँ अनहोनी को अवश्य टाला जा सकता है। तो दीपक जलाने से (विशेषकर संध्या के वक्त घर में सुख-शांति का विचरण होता है दीपक की लौ दिव्य शक्तियों को आमंत्रित करती है। उस वक्त अगर प्रभु नाम का सिमरण भी किया जाए या गुरु द्वारा प्रदत्त किसी विशेष मंत्र का जाप किया जाए तो सोने पर सुहागा हो सकता है। सारी राक्षसी तामसिक शक्तियां भस्मीभूत हो जाती हैं। और दीपक जलाने की प्रथा तो हर धर्म, वर्ग व कबीलों में ही रही है मुसलमान भाई चिराग रोशन करते हैं, ईसाई बन्धु कंडल जलाकर मरियम का आवाहन करते हैं। जैन, बुद्ध धर्मो में सांकेतिक तौर पर दीपक की रोशनी प्रकट की जाती है।

वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखें तो यह सारा जगत प्रकाश एवं ध्वनि की तरंगों से निर्मित है, स्पन्दनयुक्त है। तो दीप प्रकाश एवं मन्त्रोच्चारण से हम आपदाओं को दूर रख सकते हैं।

गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, आपने बहुत अद्भुत बातें बताई हैं लेकिन जिज्ञासावश इसी से जुड़ा एक और प्रश्न पूछना चाहूंगा। श्रद्धावान लोगों के लिए तो यह क्रिया परम लाभदायक होनी ही चाहिए लेकिन जो लोग आस्थावान नहीं हैं, आस्तिक नहीं हैं उनके लिए दीपक जलाने का क्या महत्व रहेगा ?

परम पूज्य गुरुदेव : पहली बात तो यह कि दीपक जलाना किसी आस्था या विश्वास का विषय नहीं है। एक बाह्य प्रक्रिया है और ज्ञानियों के लिए अद्भुत ज्योति का प्रतीकात्मक चिन्ह । जैसे आप चीनी खाते हैं तो यह कोई आस्था या विश्वास से जुड़ी जबरदस्ती की वस्तु नहीं है, अपितु आवश्यकता की सामग्री है क्योंकि चीनी खाने से आपको कार्बोहाइड्रेट, शर्करा के रूप में शक्ति, ऊर्जा या कैलोरी मिलेगी।

इसी प्रकार चीनी न खाना या छोड़ना भी कोई आस्था नहीं है । छोड़ेगा वही जिसे शुगर का रोग होगा, डायबिटीज होगी। तो दीपक जलाना वह छोड़ेगा जिसे नास्तिकता का रोग होगा।

दीपक जलाना तो औषधि का स्वरूप है और यह चिकित्सा के अंतर्गत आता हैं। कीटाणु या विषाणु कितना सूक्ष्म है फिर भी भयंकर रोगों से हमें आक्रान्त कर सकता है। परमाणु बम भयंकर तबाही मचा सकता है। लेकिन प्रकाश किरणों का रूपान्तरण करके कितने सृजनात्मक काम किये जा सकते हैं। बाहरी और भीतरी परिवर्तन किये जा सकते हैं। आपने सुना होगा, ऐसी रिसर्च हुई है कि गोबर से पुते घरों में परमाणु बम की विकिरणों का दुष्प्रभाव खत्म हो जाता है और हमारी सनातन पद्धति में गोबर लीपकर वेदी बना, रंगोली सजाकर दीपक जलाने का विधान है। तो सब कुछ वैज्ञानिक है। पूर्ण सत्य क्योंकि सत्य कभी अपूर्ण या अर्द्धसत्य हो ही नहीं सकता। सत्य तथ्य का दूसरा नाम है।

गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, प्रकाश पुंज या औरा किसे कहते हैं?
परम पूज्य गुरुदेव : दैवीय पुरुषों में सिर के आसपास एक वृत्ताकार आभा मण्डल मौजूद रहता है जिसे केवल ज्ञान नेत्रों से देखा जा सकता है। तत्त्ववेत्ता संत ब्रह्मज्ञानी इसका अवलोकन कर सकते हैं। इसको दिव्य चक्षुओं से देख सकते हैं। रूस में एक वैज्ञानिक हुए हैं। उन्होंने क्रिलियान नामक कैमरे का आविष्कार किया जो इस आभामण्डल का फोटोग्राफ भी ले सकता है। जिससे पता चलता है कि किसी आदमी में ऊर्जा का स्तर कितना है। लेकिन वेदाचार्य को किसी कैमरे की आवश्यकता नहीं होती। वे अपने तप के प्रभाव से ही इंसानों के आभामंडल या ऊर्जाचक्र को देख लेते हैं।

सूर्य की रोशनी को प्रिज्म से निकाला जाए तो वह सात रंगों में बंट जाती है यानि बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी एवं लाल इन्हीं सात रंगों के अनुसार विभिन्न व्यक्तियों के ऊर्जा स्तर भी सात प्रकार के होते हैं। यह एक प्रकार की स्केनिंग है। साईंस के विद्यार्थियों ने न्यूटन्स डिस्क का नाम सुना होगा।इसमें एक चक्र पर सातों रंग बना दिये जाते हैं और इसे चक्र की तरह घुमाया जाता है तो केवल सफेद रंग का आभास होता है। ऐसे सूर्य की किरणों बादलों में छिपी पानी की बूंदों में परिवर्तित होकर इन्द्रधनुष का रंग ले लेती है।

सफेद रंग का आभामंडल केवल दिव्य पुरुषों के सिर के आसपास पाया जाता है। काले रंग की आभा नित्कृष्ट मानी जाती है। यह उस शख्स के पास पाई जाएगी जो कि हिंसक प्रवृत्ति का होगा अथवा काम से ग्रस्त होगा। लेकिन दीपक जलाना वहां भी लाभदायक है।

कोई दीपक जलाने के परिणाम देखना चाहे तो सुबह शाम की संध्या पर दीप प्रज्जवलन का एक महीना प्रयोग करके देख सकता है। एक माह प्रयोग करके फिर बंद कर दे। थोड़े दिनों में दीपक के प्रयोग के लाभ का अन्तर स्वयं समझ में आ जायेगा।

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