गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, गंगा जल का आध्यात्मिक महत्व माना जाता है। हमारे हिन्दू संस्कृति के लोग गंगा को एक देवी के रूप में, एक माँ के रूप में स्वीकारते हैं। लेकिन आजकल की जो आधुनिक पीढ़ी है, वह गंगा को केवल साधारण नदी मानते हैं। गुरुदेव यह बताने की कृपा करें कि गंगा जल का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से क्या महत्व है?
परम् पूज्य गुरुदेव : इस पृथ्वी पर जितनी भी नदियाँ हैं उनकी धारा का प्रवाह तथा गंगा नदी की धारा का प्रवाह एकदम विपरीत है। जिस दिशा में गंगा का प्रवाह है, उस दिशा में किसी भी नदी का प्रवाह नहीं है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप किसी नदी में हड्डी डाल देंगे तो वह वैसी की वैसी रह जाता है जबकि गंगा नदी में अगर हड्डी डाल देंगे तो वह हड्डी गलकर जल में विलीन हो जाती है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर किसी मुर्दे को गंगा में डाल देंगे तो मुर्दे से किसी भी प्रकार की दुर्गंध नहीं आयेगी।
इसके अलावा कुछ मंत्रों का उच्चारण गंगा जल के द्वारा ही संभव है। जो व्यक्ति गंगा जल का सेवन नियमित करता है, उससे उसके हृदय को ताकत मिलती है एवं विभिन्न प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। अगर किसी आदमी को ल्यूकोड़मा है जिसका कोई इलाज नहीं है। ऐसे व्यक्ति अगर कुलंजना की जड़, मैनमिश की जड़ तथा बेरीगेटाकेना की जड़ को गंगा जल में रख कर पीस लें तथा उस स्थान पर लगायें, जिस स्थान पर ल्यूकोडुमा हुआ है तो पाँच-छः माह के अंदर ही वह रोग से छुटकारा पा जायेगा। त्वचा संबंधी अगर किसी को रोग हैं जैसे फोड़े-फुंसी, एग्जिमा आदि तो अगर नीम के पत्ते तथा चंदन को गंगा जल में पीस कर उक्त स्थान पर लगा लेगा तो त्वचा संबंधी रोग दूर हो जायेगा। गंगा जल का ऐसा प्रभाव है कि इस पर पूरे ग्रंथ लिखे जा सकते हैं।
गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, माँ गंगा के स्नान करने से किस प्रकार के रोगों का उपचार होता है? इसके जल से किन-किन फलों की प्राप्ति होती है?
परम् पूज्य गुरुदेव : आज अगर भारतीय भूमि पर शांति है यहां लोगों में आपसी प्रेम है तो वह तीन कारणों से है-गंगा, गीता तथा गायत्री। इनकी कृपा से यह सारा जगत प्रकाशमय है। अगर गंगा पृथ्वी पर न रहे तो पूरी पृथ्वी ऐसी हो जाएगी जैसे शरीर से आत्मा निकल जाती है। वैसे तो गंगा देखने से जल के समान प्रतीत होती है लेकिन इसके कुछ आह्वान मंत्र हैं।
अगर कोई व्यक्ति गंगा के किनारे रात दो बजे गुरुमंत्र के बाद ग्यारह बार माँ गंगा के स्त्रोत का उच्चारण करेगा तो वह इक्कीस दिनों में ही माँ गंगा की अनुभूति करने लगेगा और अगर वह इकतालीस दिन इसका सिमरण करेगा तो माँ गंगा के साक्षात् दर्शन करने में सफल होगा। माँ गंगा से मन चाही मुराद पा सकता है पर वह नकारात्मक सोच का व्यक्ति न हो।
कोबरीक के वृक्ष की लकड़ी कोई उपयोग में नहीं आती, उसके पत्ते कोई पशु-पक्षी भी नहीं खाते हैं। मगर सुबह के समय इसके फल को अगर गंगा जल में रख कर गंगा स्त्रोत (कवच) के बाद कोई उस गंगा जल का सेवन करता है तो उसका शरीर काँति से पूर्ण हो जाएगा। उसे धन की कभी कमी नहीं होगी, ऐसे परिवार में कभी क्लेश नहीं होगा एवं पति-पत्नी के बीच कभी तनाव नहीं होगा। अगर कोई व्यक्ति एड्स, कैंसर जैसे भयानक रोग से ग्रस्त है तो वह अगर चालीस दिन तक ऐसे जल का सेवन करेगा तो वह भी ठीक हो जाएगा। ऐसी माँ गंगा एवं कोबरीक फल की महिमा है।
ऐसे-ऐसे ऋषि-मुनि गंगा तट पर बैठे हैं। जो देखने में गरीब लगते हैं परंतु इनमें कुछ ऐसे हैं जो साधन संपन्न होते हुए भी माँ गंगा के तट पर भगवान् गणपति, माँ लक्ष्मी, माँ गंगा, भगवान् शिव, भगवान् विष्णु एवं भगवान् ब्रह्मा का सिमरण करते रहते हैं और उन्हें प्रभु की कृपा प्राप्त होती है।
जो भी व्यक्ति अपना पूजन शिवलिंग पर करता है तो उसे हजार गुणा फल मिलता है परंतु जो व्यक्ति अपने पूजन को गंगा स्नान कर गंगा के किनारे करता है, उसे अरबों-अरबों वर्षों का फल मिलता है एवं अनेक प्रकार से दैवीय कृपा की प्राप्ति होती है।
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