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काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार पर नियंत्रण के अद्भुत

गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, इस जगत में चाहे साधारण व्यक्ति हो या कोई संत, सभी के सामने यही स्थिति है कि काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पर नियंत्रण कैसे पाया जाए ?

परम पूज्य गुरुदेव : यह प्रश्न जन कल्याण के लिए अति उत्तम है। इस जगत में जितने भी युद्ध हो रहे हैं, झगड़े हो रहे हैं, माता-पिता के, भाई-बहनों के, दोस्तों के, पति-पत्नी के देशों के, उनका मूल यह पांचों तत्वों का वास्तविक अर्थ न जानना है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इन तत्वों को खराब कहना या इन तत्वों को अच्छा कहना, इसी से सारे विवाद हैं। इसी से आज सारे जगत में युद्ध हो रहे हैं। अगर कोई व्यक्ति इन तत्वों को जान ले, जैसे कोई चिकित्सक है वह रोग के मूल कारण को जानता है। क्योंकि कारण जानने के लिए उन्हें कितने-कितने टैस्ट कराने पड़ते हैं। लाखों रुपया खर्च करना पड़ता है। लेकिन औषधि तो मात्र कुछ रुपयों की होती है। उसी तरह से मूल है इन्हें जांच करना कि काम है क्या, क्रोध है क्या, इसकी उत्पत्ति कहां से हुई ?फिर इसे नियंत्रण कैसे किया जाए, इसे उपयोग में कैसे लाया जाएगा? अगर कोई इस स्थिति को जान लें तो वह सारे रोगों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। क्योंकि आज जगत में जितने भी रोग हैं सब पेट की खराबी से होते हैं, लीवर की गड़बड़ी से हो रहे हैं। जैसे किसी व्यक्ति को क्रोध आता है तो वह यह नहीं देखेगा कि वह क्या बोल रहा है या किससे बोल रहा है या ऐसा बोलने से दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ेगा, वह पूरा क्रोध करेगा। उसके बाद जब आदमी क्रोध करके पछतायेगा तो वह व्यक्ति कभी भी क्रोध से पार नहीं हो सकता, वह थोड़े समय बाद फिर क्रोध करेगा। जो भी व्यक्ति माफी मांगेगा जगत की नजर में, कानून की नजर में, व्यावहारिकता की नजर में उसे अच्छा कहा जाएगा। उस पर दया की जायेगी और उसे अच्छा माना जायेगा। लेकिन जैसे उसको माफ कर दिया जायेगा वह थोड़े समय के बाद देखेगा कि व्यक्ति खुद कहेगा कि मैंने क्रोध किया था या काम किया था। जैसे कोई व्यक्ति अगर बलात्कार करता है तो उसे जब पता लगता है कि यह मैंने गलत काम किया तो वह पछताता है। उसे माफ भी कर दिया जाता है। लेकिन थोड़े समय बाद वह आदमी देखता है कि मेरे पास इसका कोई नियंत्रण नहीं हो रहा मैं अपने आपको कंट्रोल कर रहा हूं लेकिन मेरे पास इसका कोई उपाय नहीं है। थोड़े समय के बाद वह फिर उसी प्रक्रिया से गुजरता है तो वह आदमी पछताता है। इसी पछतावे में और करने में उसका जीवन बीत जाता है। वह रोगों से ग्रस्त हो जाता है और कोई आदमी आत्महत्या कर लेता है, कोई रोगों से ग्रस्त हो जाता है। जब कोई व्यक्ति इन तत्वों को जान लेता है तो है नब्बे प्रतिशत जो रोग हैं वे स्वयं समाप्त हो जाते हैं। इनके मूल कारणों को न जानना और इनके उपाय को न जानना सारे रोगों का जन्मदाता है।

क्रोध शक्ति का प्रतीक है। क्रोध का अर्थ है इस व्यक्ति में शक्ति है। अगर व्यक्ति शक्तिहीन होगा या बीमार होगा तो उसे कभी क्रोध नहीं आएगा। सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि क्रोध, लोभ, अहंकार कोई खराब चीज़ नहीं है। इसका उपयोग करना हमें नहीं आ रहा। इसके उपयोग करने के उपाय क्या हैं, यह मैं आपको बताऊंगा। जो व्यक्ति इसका प्रयोग जान लेगा वह क्रोध को खराब नहीं कहेगा। एक तो जब भी किसी व्यक्ति को क्रोध आये, वह सबसे पहले हृदय में यह मान ले कि प्रभु ने मुझे प्रसाद दिया है। यह मेरे पास क्रोध आया है मैं इसका उपयोग करूंगा, क्योंकि यह देखा गया है कि जैसे ही क्रोध आता है तो वह व्यक्ति को पूरी गुलामी में ले लेता है। उसको अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। उसमें व्यक्ति का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। सिर्फ क्रोध का अस्तित्व रह जाता है। व्यक्ति अपने आप को भूल जाता है। उसकी चेतना लुप्त हो जाती है, उसकी सहनशक्ति का लोप हो जाता है और क्रोध अपनी मर्जी से व्यक्ति को चलाता है। सबसे पहले व्यक्ति को यह सोचना चाहिए कि मैं क्रोध के नियंत्रण में नहीं रहूंगा। अब मैं इस पर नियंत्रण करूंगा, अब मैं इसको अपने पास बांध लूंगा और इसका मैं उपयोग करूंगा। इसका एक मंत्र है। जब भी क्रोध आता है तो वह सांस की प्रक्रिया के द्वारा आता है। जब भी किसी व्यक्ति को क्रोध आए तो वह एक मिनट के लिए अपनी सांस को बंद कर ले और नाभि से मात्र ‘ह्रीं’ मंत्र का उच्चारण करें। इस तरह का मां जगदम्बा का मंत्र है। अगर श्वास उससे बंद नहीं होता तो वह धीरे-धीरे नाभि के अंदर से ह्रीं मंत्र का उच्चारण करे तथा श्वांस धीरे-धीरे ले। जब व्यक्ति मंत्र का प्रयोग करेगा और साक्षात जो दिव्य शक्तियां हैं वह उसकी नाभि में उसके हृदय में प्रवेश कर जाएंगी और वह शक्ति फिर उसे बोध कराएगी कि उस क्रोध ने उसको कितना सुन्दर बना दिया है। अगर क्रोधी व्यक्ति का टैस्ट करवाया जायेगा तो उसका उत्तर वही आएगा जो एक पागल व्यक्ति का होता है।

जब किसी व्यक्ति को काम वासना आती है तो वह अपने आपको भूल जाता है क्योंकि कामुक व्यक्ति सदा कमजोर होता है तथा शांत व्यक्ति अधिक शक्तिशाली होता है तथा उसमें काम शक्ति भी अधिक होती है। क्रोधी व्यक्ति में काम शक्ति की कमी होती है उसके शरीर में नाना प्रकार के रोग होते हैं। जब भी किसी व्यक्ति में काम या क्रोध का आवेग आये तो सबसे पहले जाने कि यह काम है, यह प्रभु का प्रसाद है क्योंकि काम से हमारी उत्पत्ति हुई है। काम से जगत की उत्पत्ति हुई है, काम परमात्मा की तरफ ले जाता है। हमारे जो माता-पिता हैं वे भी काम से पैदा हुए, हम भी काम से पैदा हुए। जब भी कामवासना आए व्यक्ति को ‘क्लीं‘ शब्द का प्रयोग करना चाहिए। पहले एक बार ‘‘ शब्द का प्रयोग करे, उसके बाद ‘क्लीं क्लीं’ बोलता जाए। जब व्यक्ति बार-बार ‘ॐ’ का प्रयोग करेगा तो उसकी लयबद्धता टूट जाएगी और धन की कमी आएगी और कुछ रोगों का भी आगमन होता है। ‘क्लीं‘ शब्द का उपयोग पांच मिनट करने पर व्यक्ति देखेगा कि काम ने उसके शरीर के कुछ हिस्सों को उग्र रूप दे दिया है, कुछ हिस्सों में विकार दे दिया है और कुछ हिस्सों को आन्दोलित कर रहा है। उसी काम ने उसके पूरे शरीर को ऐसी प्रेरणा से, आशा से, ऐसी शक्ति, करुणा से भर दिया है जो अनुपम है। उसे लगेगा कि प्रभु का प्रसाद मेरे अन्दर आ गया है फिर काम उसके नियंत्रण में आ जायेगा, काम के नियंत्रण में वह नहीं रहेगा। काम उसके वश में हो जायेगा और वह उसका उचित उपयोग कर सकेगा।

जब किसी व्यक्ति को काम या लोभ आता है तो वह उसके वशीभूत होकर जुआ खेलना, चोरी करना आदि नाना प्रकार के कर्म करता है। आप यह जानकर हैरान होंगे कि अगर यह सरकार चोरों को इस मंत्र का उपयोग करवा दे तो कोई भी चोर चोरी नहीं करेगा क्योंकि जब कोई व्यक्ति चोरी करता है तो उसे लगता है कि मैं यह चोरी करके अपने परिवार का कल्याण करूंगा, अपने बच्चों का पालन-पोषण करूंगा। लेकिन उसे यह मालूम नहीं है कि जो वह चोरी कर रहा है उस धन के उपयोग से उसके बच्चों का विकास रुक गया है। शिक्षा में कमी आ गई है या उसके बच्चे या पत्नी को कोई रोग हो गया है या उसे ही कोई कष्ट हो गया हैं। इस मंत्र से उसे साक्षात यह अनुभव होगा और वह व्यक्ति चोरी करना बंद कर देगा। अगर सरकार जेलों में इस मंत्र का उपयोग कर ले या कोई व्यक्ति जेल में जाकर चोरों के ऊपर इस मंत्र का प्रयोग कर ले तो वहां कोई भी व्यक्ति जिंदगी भर चोरी या बुरा काम नहीं करेगा। यह मां दुर्गा की दिव्य शक्ति है। जो व्यक्ति इस शब्द मंत्र का उपयोग करेगा वह कभी लोभ से ग्रस्त नहीं होगा, कभी चोरी नहीं करेगा। उसे चोरी से ज्यादा धन प्रभु कृपा से प्राप्त होगा। अतः जब भी व्यक्ति लोभ से ग्रस्त हो या चोरी से ग्रस्त हो तो ‘ऐं ह्रीं कलीं” इन तीन मंत्रों का उच्चारण करे। पहली बार ‘ॐ’ का उच्चारण करे फिर ‘ऐं, ह्रीं, कलीं’ इन तीन शब्दों का उच्चारण करे।

कोई भी व्यक्ति जेलों में जाकर, किसी जुआरी या लोभी व्यक्ति पर इसका प्रयोग कर सकता है। डॉक्टर भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति सुबह, दोपहर, शाम की संध्या में दस-दस मिनट गुग्गल, चंदन और लोबान को जलाकर धूनी की तरह उपयोग करके इसका प्रयोग करे तो काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार उस व्यक्ति के अधिकार में आ जाते हैं और वह जब चाहे उनका लाभकारी उपयोग कर सकता है।

साधारणतः हम काम, क्रोध, लोभ, मोह या अहंकार को नहीं बुलाते । जब हम किसी व्यक्ति या स्त्री को देखते हैं तो हमारे में काम आ जाता है। स्त्री जब किसी सुन्दर पुरुष को देखती है तो उसके अन्दर काम आ जाता है। लेकिन जब व्यक्ति इन मंत्रों का उपयोग करेगा तो उसके शरीर में ऐसी आभा आ जायेगी कि उसे पता लग जाएगा कि यह व्यक्ति आ गया और यह मुझे हानि पहुंचायेगा।

इस जगत में जो भी हमें नजर आ रहा है, हमारे मकान, कार, कोठी, पद, प्रतिष्ठा, यश, वैभव यह अहंकार का ही प्रतिरूप है। अहंकार की प्रतिछाया है। अहंकार ही इनमें प्रतिध्वनित हो रहा हैं। अगर जगत में अहंकार समाप्त हो जाए तो यह सब समाप्त हो जायेंगे। कोई व्यक्ति हाथ भी नहीं हिला पाएगा। कोई व्यक्ति बोल भी नहीं पाएगा। कोई व्यक्ति अपना नाम भी नहीं रख पाएगा। क्योंकि नाम भी अहंकार का सूचक है। सभी संत महात्मा कहते हैं कि अहंकार को हटाओ, अहंकार को मिटाओ। लेकिन ग्रंथों में जो इसका सार है जिसे कुछ तत्ववेत्ता संत ही समझ पाए हैं। इस जगत को निर्माण करने वाला भी अहंकार है और इस जगत का विनाश करने वाला भी अहंकार है। जो आदमी अहंकार के प्रतिरूप को नहीं समझ पाता वह वास्तविकता को नहीं समझ पाता और स्वयं अपना नाश कर लेता हैं। जो व्यक्ति अहंकार को प्रभु का प्रसाद समझता है, अहंकार उसके लिए कभी बुरा नहीं है। इस जगत में जब भी हमें मुक्ति मिलती है तो वह अहंकार के द्वारा ही मिलती है। अगर अहंकार न हो तो हम स्वयं मुक्त है।

जितने भी ग्रंथ हैं यह सब अहंकार के प्रतिरूप हैं। अहंकार समाप्त होते ही सभी समाप्त हो जाते हैं। अहंकार के मिटते ही यह जगत समाप्त हो जाएगा। लेकिन यह अहंकार हमारे दुखों का भी कारण है। इसके कुछ मंत्र हैं। अगर कोई व्यक्ति उनका प्रयोग करेगा तो यह अहंकार हमारे लिए बिजली की तरह का काम करेगा। जैसे बिजली हमारे लिए बहुत उपयोगी है लेकिन वह हमारी मृत्यु का कारण भी बन सकती है। जैसे विष को चिकित्सक कैसे प्रयोग करते हैं। इस जगत में जितनी भी औषधियां हैं वे सभी विष से बनी हुई हैं। लेकिन चिकित्सक को यह ज्ञान होता है कि उसका उपयोग किस तरह से करना है। जब तक हमें इस विधि का ज्ञान नहीं होगा तब तक यह अहंकार हमें मारता रहेगा। हमें हानि करता रहेगा। अहंकार के द्वारा भी उसी तरह से कार्य लिया जा सकता है जैसे बिजली व विष से लिया जाता है।

सभी जानते हैं कि अमृत मंथन दानवों और देवताओं ने मिलकर किया। अगर देवता स्वयं चाहते तो कभी भी अमृत नहीं निकाल पाते। दानवों की सहायता से ही समुद्र मंथन का विकास हो पाया। जिस तरह उन देवताओं ने दानवों को अपने अधीन किया, उनसे कार्य लिया। उसी तरह से ही अहंकार रूपी जो दानव है उससे किस तरह से इसका कार्य लेना है, यह प्रभु कृपा से ही संभव हो पाता है। अगर कोई मानव स्वयं चाहेगा कि मैं अहंकार को वशीभूत कर लूंगा या इस तरह से मैं अहंकार को वश में कर लूंगा तो एक और अहंकार का रूप बन जाता है। अहंकार के ऊपर एक और अहंकार बन जाता है। इसी तरह अहंकार की परतें बढ़ती जाती हैं। लेकिन कुछ ऐसे मंत्र हैं जो कि शास्त्रों द्वारा प्रतिपादित ऐसे रहस्यकारी मंत्र हैं कि अगर मानव उनका उपयोग करेगा तो जैसे बिजली का उपयोग वैज्ञानिक कर रहे हैं, उसी प्रकार से अहंकार का प्रयोग होगा। यह मंत्र उसी तरह कार्य करता है जैसे औषधियां कार्य करती हैं। जैसे घी भी अमृत है और शहद भी अमृत है। अगर कोई घी और शहद को बराबर अनुपात में मिलाकर विशेष प्रतिक्रिया से गुजारे तो वह विष का रूप ले लेते हैं। उसके खाते ही आदमी की मृत्यु हो जाती है। ऐसे दोनों अमृत भी विष बन जाते हैं। इसी प्रकार यह जो अहंकार है यह जो विष है। उसको अमृत की तरह से प्रयोग करना है । जो व्यक्ति सुबह, दोपहर, शाम को दस ग्यारह बार इस मंत्र का प्रयोग करेगा तो अहंकार नामक शत्रु उसका मित्र बन जाएगा। जैसे देवताओं ने दानवों को मित्र बनाया और अमृत मंथन किया उसी तरह व्यक्ति मंत्रों का प्रयोग करेगा तो यह विष रूपी दानव उनका परम मित्र बन जाएगा।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जितने भी लोग क्रोध करते हैं या अहंकार के वशीभूत होते हैं। व्यक्तियों को लगता है कि वह क्रोध कर रहा है, अहंकार कर रहा है। लेकिन ऋषि-मुनियों के द्वारा अदृश्य लोकों में जाकर शरीर से पार होकर देखा गया है कि कुछ अतृप्त आत्मायें भटक रही हैं जो ऐसी स्थितियों में सहायक होती हैं। ऐसी अनंत अनंत करोड़ों आत्मायें भटक रही हैं जिनको शरीर नहीं मिलते, वे ऐसा शरीर देखती हैं, बच्चा देखती हैं या कोई शराब पीते हुए देखती हैं या जुआरी देखती हैं तो उसके शरीर में प्रवेश कर जाती हैं। मंत्र बोलने से पहले व्यक्ति पूरब की ओर मुंह करके अपने गुरु को करे। ‘श्री गुरवे नमः’ इसका ग्यारह बार उच्चारण करे। फिर ‘श्री गणेशाय ‘नमः’ ग्यारह बार उच्चारण करे। फिर ‘नमः शिवाय’ इसका उच्चारण करें। अगर कोई सिख है तो वह ‘सतनाम श्री वाहेगुरु’ का इक्कीस बार उच्चारण करे। अगर कोई मुसलमान है तो वह ‘अल्लाह हु अकबर’ का उच्चारण इक्कीस बार करे। प्रणाम

अहंकार सभी को आता है उसका हिंदू, सिक्ख, इसाई, मुसलमान, जैन, बुद्ध, पारसी कोई धर्म नहीं है। वासना का भी कोई धर्म नहीं है। उसी तरह से यह मंत्र अहंकार को नाश करने वाला है। कोई यह न समझे कि यह संस्कृत का मंत्र है और केवल हिंदुओं का है। यह मंत्र प्रकाश रूप है, सूर्य रूप है। यह सभी जाति-धर्म के लोगों के लिए है।

यह मंत्र मन ही मन उच्चारण करें-

ॐ गं हं रां ह्रीं श्रीं नमोऽस्तुते |

इसका पासवर्ड गुरू से प्राप्त कर सकते हैं।

आप यह जानकर हैरान होंगे कि इसके प्रयोग से अहंकार का लोप हो । जाता है और व्यक्ति शांत हो जाता है, शक्तिशाली हो जाता है उसके शरीर में ओज आ जाता है। ऐसी इस मंत्र की महत्ता है।

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3 Comments

  • SUNIL KUMAR PANDEY March 6, 2023

    ॐ गं हं रां ह्रीं श्रीं नमोऽस्तुते |
    इस मंत्र का पासवर्ड बताएं गुरुजी बड़ी कृपा होगी।
    प्रणाम

    • Nikhil dhanak April 4, 2023

      Jai satgurdev jai guru Maa ji koti koti parnaam charnon mein ?

  • Nikhil dhanak April 4, 2023

    Jai satgurdev jai guru Maa ji koti koti parnaam charnon mein ?

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