परम पूज्य सदगुरुदेव महाब्रह्मऋषि श्री कुमार स्वामीजी ने जन मानस के कष्टों व पीड़ाओं को दूर करने हेतु वर्ष 2002 में समागमों का आयोजन आरम्भ किया। तन -मन -धन की समस्याओं के निवारण के लिए सरल शास्त्रोक्त उपाय – बीज मंत्र, कवच व दुर्गा सप्तशती जैसे कठिन पाठों को सरल व संक्षिप्त रूप में प्रदान किया।
भगवान शिव इस पाठ की महिमा का वर्णन करते हुए कहते है कि इस पाठ से ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, सम्पत्ति, शत्रुनाश तथा परम मोक्ष की भी सिद्धि होती है तथा ध्यान और मन्त्र से कई गुना लाभ की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव, माँ भगवती से कहते हैं :-
नाम्ना शत गुणं स्तोत्रम ध्यान तस्माच्छताद्धिकम।
तस्माच्छताधिको मंत्रः कवचं तच्छताधिकम।।
शतनाम या सहस्त्रनाम यदि सौ गुणा लाभ देता है तो स्तोत्र दस हज़ार गुणा, ध्यान एक लाख गुणा, मंत्र एक करोड़ गुणा तथा इसका पाठ एक अरब गुणा लाभ प्रदान करता है।
भगवान शिव आगे कहते हैं जो रीति से निष्कीलन करके जप, हवन, तप, पाठ आदि करता है, वह मनुष्य सिद्ध हो जाता है, वही देवी का पार्षद होता है और वही गन्धर्व भी होता है। सर्वत्र विचरते रहने पर भी इस संसार में उसे कहीं भी भय नहीं होता। वह अपमृत्यु के वश में नहीं पड़ता तथा देह त्यागने के अनन्तर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
सभी मन्त्रों का, जप, तप, यज्ञ व प्रत्येक कार्य का अभिकीलक होता है अर्थात् कार्य की सिद्धिमें विघ्न उपस्थित करने वाला शापरूपी कीलक, जो उस कार्य की सफलता में बाधा उत्पन करता है जिस कारण तप करने के पश्चात भी साधक को आंशिक लाभ होता है और पूर्ण सिद्धि प्राप्त नहीं होती।
अतः कीलन को जानकर उसका परिहार करके ही पाठ आरम्भ करे। इसलिये कीलक और निष्कीलन का ज्ञान प्राप्त करने पर ही यह स्तोत्र निर्दोष होता है और विद्वान् पुरुष इस निर्दोष स्तोत्र का ही पाठ आरम्भ करते हैं।
यह ज्ञान माँ दुर्गा ने केवल ब्रह्मऋषियों को ही प्रदान किया है, इसलिए तत्ववेता, ब्रह्मवेत्ता, ब्रह्मऋषि, सद्गुरु से प्राप्त पाठ की विशेष महिमा होती है, क्योंकि सद्गुरु निष्कीलन सहित पाठ प्रदान करते हैं फलतः समस्याओं का निवारण होता है और तन – मन – धन के सुखों की और मोक्ष की प्राप्ति होती है।